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________________ कहते हैं यह सुनते ही सारे लोग थोड़ी दूर खिसक गए यह कहते हुए कि किसी के साथ मरा थोड़े ही जाता है, मात्र रोया जा सकता है। सभी बगलें झाँकने लगे। माँ-बाप ने कहा - हम कैसे पी लें। एक ही लड़का तो है नहीं, चार लड़के और हैं, ऐसे हम किस-किस के लिए मरेंगे । भाई कहने लगे - अभी तो हमने ज़िंदगी का मज़ा ही नहीं लिया। अभी तो हमारी शादी भी नहीं हुई, हम कैसे मर सकते हैं। पत्नी भी आई, संत ने कहा - तू तो इसके लिए मर रही थी, बहुत रो भी रही थी, तू ही इस जल को पी ले। पत्नी ने कहा - जो होना था सो हो गया, मैं अब जैसे-तैसे अपना जीवन गुजार लूँगी । सबने अपने-अपने बहाने बताए और पीछे हट गए। तब महाराज ने कहा - कोई बात नहीं अगर तुम में से कोई भी पीने को तैयार नहीं है तो यह कटोरा मैं ही पी जाता हूँ। घरवालों ने कहा - आप धन्य हैं महात्मा जी, आप तो मुक्त आत्मा हैं, आप तो परमहंस हैं, आप तो धन्यभागी हैं, आपका तो जीवन ही जन्म-मरण से मुक्त है, आप तो विदेह पुरुष हैं, अगर आप पी भी लेंगे तो क्या फ़र्क पड़ेगा। महाराज ने जैसे ही अपने मुँह के आगे कटोरा लाया तभी वह युवक जो सोया हुआ था झट से उठकर बोला - गुरुदेव आपको यह जल पीने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि इस जल को पीनेवाला जाग चुका है। यह कहते हुए वह उठ बैठा । घरवाले अवाक रह गए कि यह क्या खेल था। युवक खड़ा होता है, वह पानी पी लेता है, गुरुजी का झोला पकड़ता है और उन्हीं के साथ प्रभु-भजन और हरिभजन के लिए निकल पड़ता है। ऐसे लोग जो निकल जाते हैं, वे ही छठे धरातल पर आते हैं। यह संन्यास का धरातल है, प्रभु भजन का धरातल है कि मोह-माया के नश्वर पाश, नश्वर बंधन, व्यर्थ के आग्रह सब छोड़कर व्यक्ति निकल जाता है। पंछी जो अब तक नीड़ में उलझा था, मकड़ी जो अब तक मायाजाल में उलझी हुई थी थोड़ी-सी चेतना जगी और व्यक्ति निकल पड़ा। जीवन में अगर कभी संन्यास लेने की वेला आ जाए तो मुहूर्त तलाशने की मूर्खता मत करना । क्योंकि दुनिया में सौ में से अस्सी लोगों के अगर संन्यास के भाव जगे होंगे तो वे माँ-बाप से पूछने और मुहूर्त निकालने के चक्कर में अस्सी में से नब्बे प्रतिशत लोग वापस लौट कर चले गए। जिस समय जो भाव हो जाए उस समय उसको कर लेना ही श्रेष्ठ मुहूर्त है। आप अपनी अन्तआत्मा की प्रेरणा से जिओ न कि किताबों या १८९ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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