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________________ हम महावीर के साथ चलते हैं, न तो आगे और न ही पीछे उनके साथ-साथ चलते हैं ताकि जब भी ज़रूरत लगेगी महावीर को पुकार लेंगे। हाँ, कहीं भी लुढ़के या फिसले तो उन्हीं से अनुरोध करेंगे कि हमारा हाथ थाम लो और हमें इस पार से उस पार ले चलो। हमारी मति दुर्मति हुई तो अनुरोध करेंगे कि सन्मति प्रदान करें, गति दुर्गति में परिणित हुई तो अनुरोध करेंगे कि हमारी गति सद्गति हो । हमारा अनुरोध ही हमारी प्रार्थना होगी, पूजा और भक्ति होगी । पहला धरातल जिस पर प्राणीमात्र खड़ा है उसे महावीर अज्ञान का, मिथ्यात्व, अविद्या अथवा माया-प्रपंच का धरातल कहते हैं । ऐसा धरातल जहाँ व्यक्ति की आँखों के सामने भले ही रोज सूरज उगता और अस्त होता हो, पर ज्ञान की दृष्टि से व्यक्ति के भीतर सदा अंधकार ही छाया रहता है । वह शरीर का पोषण करता है, भोग करता है, आनन्द लेता है । वह शरीर तक ही सीमित रहता है। उसके जीवन की धुरी शरीर और इन्द्रियों तक ही सीमित रहती है । वह ज्ञान को ज्ञान नहीं समझता और अज्ञान को अज्ञान नहीं समझता । वह तो ज्ञान को अज्ञान और अज्ञान को भी ज्ञान समझ लेता है । असत्य को सत्य और सत्य को असत्य समझता है । वह विद्या को अविद्या और अविद्या को विद्या समझने लगता है। जबकि हमें लगता है कि यहाँ कोई हमारे माता-पिता हैं, कोई पत्नी, कोई भाई-बहिन हैं पर महावीर की भाषा में कहें तो हम सब उसी तरह हैं जिस तरह नदी में अलग-अलग पत्ते बह रहे हों। हमें भले ही लगे कि हमारा अलग-अलग अस्तित्व है, पर हम बहते हुए प्राणी हैं, जिनका कब किसका किसके साथ संयोग हो जाए। लेकिन फिर एक ऐसी लहर आएगी कि पत्तों को जुदा कर देगी । फिर नया जन्म होगा और हम नया जीवन धारण कर लेंगे । जन्म-मरण की इस धारा में पता नहीं हम कितनी बार मिले हैं। कोई हमारा गुरु हो और पिछले जन्म में वही शिष्य रहा हो। हो सकता है इस जन्म में जो आपकी पत्नी है अगले जन्म में आपकी माँ हो । इस धारा में कुछ पता नहीं चलता, कभी पीपल के पत्ते के पास नीम की छोटी-सी पत्ती आ जाती है, कभी इमली के बूटे के पास बादाम का बड़ा पत्ता लग जाता है । यह मिथ्यात्व का धरातल है, अज्ञान का धरातल है । पर दुनिया में लोग इसी अज्ञान Jain Education International For Personal & Private Use Only १८३ www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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