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________________ बुद्धि के तल पर जीना विज्ञान है, पर हृदय और आत्मा के तल पर जीना अध्यात्म है। बुद्धि के तल पर जीना ऊपर-ऊपर जीना है पर आत्मा और हृदय के तल पर जीना गहराई में जीना है। मुक्ति का रास्ता बुद्धि के दरवाजे से नहीं खुलेगा, क्योंकि बुद्धि केवल तर्क-वितर्क करती रहेगी, बुद्धि संदेह और अश्रद्धा करती रहेगी, पर यह दिल का मामला है, अन्तआत्मा का मामला है, भीतर से उठने वाली पुकार का मामला है। जब तक भीतर से, दिल से पुकार न उठे, जिज्ञासा और प्यास तथा अभीप्सा न उठे तब तक व्यक्ति चाहे जितना साधनापथ को समझ ले तब भी साधना-मार्ग का अनुसरण नहीं कर पाता । वह कितनी ही बार साधना-मार्ग के बारे में क्यों न पढ़ ले फिर भी चार कदम साधना-मार्ग की ओर बढ़ नहीं पाता । क्योंकि बुद्धि से पढ़ा, बुद्धि से सुना, बुद्धि के दरवाजे को खोलने का प्रयत्न किया और बुद्धि से बात को फिट करने का प्रयत्न किया। यह तो हृदयवानों का रास्ता है, क्षत्रियों का मार्ग है, आत्मविश्वास का, जोश और होश का रास्ता है। केवल बातें करने वालों का यहाँ काम नहीं है। बनिया-बुद्धि वालों के लिए भी यह रास्ता नहीं है। इसीलिए महावीर की परम्परा में उनसे पहले सैकड़ों क्षत्रिय मुक्त हो गए और महावीर का अनुयायी अगर वणिक कौम का है तो वे अभी तक मुक्त नहीं हुए। क्योंकि वे क़दम बाद में रखते हैं लाभ-हानि पहले देखते हैं। महावीर का मार्ग जोख़िम का मार्ग है । यहाँ इश्क तो होगा, पर अपनी ही रिस्क पर इश्क होगा। मार्ग तो अत्यन्त सीधा-सपाट है, पर वैज्ञानिक है। वैज्ञानिक इसलिए कि किसी व्यक्ति ने उसे जी लिया । अगर कोई व्यक्ति दूसरे मार्ग को जी ले तो वह वैज्ञानिक हो जाता है। हाँ, अगर दूसरा व्यक्ति उसे न समझ पाए तो वह केवल दार्शनिक व्याख्याएँ करता रहता है। महावीर का मार्ग दार्शनिक का मार्ग नहीं है। मैं भी कोई दार्शनिक व्याख्या नहीं कर रहा हूँ, न ही सिद्धान्तों की व्याख्याएँ कर रहा हूँ। मैं तो जीवन-द्रष्टा हूँ और जीवन, जगत को देखते हुए, स्वयं को और दूसरों को देखते हुए, जीवन में जो बोध समझ में आता है वह अनुभव आप लोगों से बाँट लेता हूँ। मैं विचारक या चिंतक भी नहीं हूँ। मैं समझता हूँ तर्क-वितर्क से ईश्वर को पाया नहीं जा सकता । यह तो श्रद्धा का, निष्ठा का, सत्य को समझने और जीने का तथा प्रेम का मार्ग है। यह तो मुक्ति के लिए स्वयं को होश और बोध के साथ समर्पित करने का मार्ग है। १८२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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