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________________ मानवजाति के लिए निर्धारित किए। इस भौतिक और आध्यात्मिक संसार को समझते हुए उन्होंने मानव की चौदह भूमिकाएँ समझीं और जानने की कोशिश की कि कौन व्यक्ति किस धरातल पर खड़ा है । अन्यथा आप में और महावीर में कोई फ़र्क़ नहीं है । आप में और मुझ में भी कोई बहुत फर्क नहीं है। फ़र्क़ केवल धरातल का है कि एक व्यक्ति छठे धरातल पर है तो एक चौथे धरातल पर है। कोई व्यक्ति आठवें धरातल पर खड़ा है तो कोई व्यक्ति महावीर और बुद्ध जैसा तेरहवें और चौदहवें धरातल पर खड़ा है। अर्थात् कोई व्यक्ति असत्य के कीचड़ में खड़ा है, कोई व्यक्ति सत्य के प्रकाश की ओर बढ़ चुका है तो कोई सत्य को आत्मसात कर चुका है तो कोई व्यक्ति सत्यमय हो चुका है। हम सभी कभी शिखर के ऊपर भी पहुँचते हैं पर हमारे पहुँचने में और सिद्ध बुद्ध मुक्त पुरुषों के शिखर पर पहुँचने में फ़र्क़ है । हम लोग ऊपर पहुँचते हैं जबकि उनके नीचे शिखर होता है। वे पहुँचे हुए हैं, हम अगर ऊपर पहुँचते हैं तो कभी भी वापस नीचे गिर सकते हैं, लेकिन जिनके नीचे शिखर होता है वे कभी गिरते नहीं हैं। जहाँ उनके कदम होते हैं उन कदमों के नीचे ही शिखर हुआ करता है । इसीलिए तो हम ऐसे महापुरुषों को शिखर पुरुष, स्वर्ण- पुरुष, अमृत - पुरुष कहते हैं । महावीर ऐसे ही अमृत-पुरुष, शिखर - पुरुष हैं । हम सब उनकी संतान हैं इसलिए अमृत - पुत्र हैं । हमारी रगों में उसी अमृत - तत्त्व का संचार हो रहा है क्योंकि पिता के गुण-दोष संतानों के खून में अवश्य ही प्रभावी होते हैं। चूँकि हम महावीर जैसे महापुरुषों की संतान हैं तो ऐसे ही हमारी रगों में उनके क्षात्रत्व का तेज, तीर्थंकर का खून समाया हुआ है। हमें गौरव होना चाहिए कि हम सिद्धों के, बुद्धों के वंशज हैं। जब भी लगे कि हमारी आत्मा भटक गई, हमारी आत्मा ठिठक गई या किसी से आवृत्त हो गई तब-तब यह आत्मविश्वास जाग्रत करना चाहिए कि मैं कोई गीदड़ों की संतान नहीं, मैं सिद्धों का वंशज हूँ। और सिद्धों का वंशज होने के नाते अन्य किसी तत्त्व से समझौता नहीं करूँगा । भले ही मैं इस भौतिक संसार में जीता हूँ, यहाँ पैदा हुआ हूँ और यहीं अपनी नश्वर देह का त्याग करूँगा, पर यह तय है कि जब भी ध्यान करूँगा, स्वयं को देखूँगा तब सिद्धों को अपना पूर्वज मानते हुए उस सिद्धशिला की ओर, उस सिद्धत्व की ओर बढ़ने का निरंतर प्रयत्न करता रहूँगा । मैं केवल बुद्धि के तल पर नहीं जिऊँगा, मैं हृदय और आत्मा के तल पर जिऊँगा । Jain Education International - For Personal & Private Use Only १८१ www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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