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________________ से प्रेरित होकर जी रहे हैं। उन्हें केवल धन ही दिखाई देता है, पत्ती ही दिखाई देती है। ज़मीन-जायदाद ही दिखाई देती है, इस शरीर का भरण-पोषण ही दिखाई देता है, इसके अतिरिक्त कुछ दिखाई नहीं देता। यह आसक्ति का, मोह का धरातल है। यह ज़रूरी नहीं है कि हम जन्म-जन्मान्तर तक अज्ञान के धरातल पर ही अटके रहेंगे। दूसरा धरातल - भगवानश्री कहते हैं - जीवन में कभी खुद के अनुभव से, किसी पवित्र वाणी को सुनकर उसे अन्तर्बोध की एक किरण मिल जाती है तब वह थोड़ा-सा उस धरातल को पार करता है और दूसरे धरातल पर अपने कदम बढ़ा लेता है। तब कहा जाता है कि इसने सत्य का कुछ स्वाद चखा है, परमात्मा की छोटी-सी किरण अर्जित की है। उसे लगता है कि अब थोड़ा-सा धर्म करना चाहिए। थोड़ी-सी झलक, थोड़ा-सा प्रकाश उदित होता है तब व्यक्ति दूसरे धरातल पर अपने कदम रखता है जिसे भगवानश्री ‘सासादन' कहते हैं। ‘सासादन' अर्थात् अब थोड़ा स्वाद चखा। . ___ तीसरा धरातल है मिश्र, जिसमें हम इस शरीर और आत्मा दोनों को मानते हैं। परमात्मा को भी मानते हैं और जीवन की सच्चाई भी स्वीकार करते हैं। दुनिया की अस्सी प्रतिशत आबादी ऐसी है जो मिश्रित तरीके से जी रही है। थोड़ा-थोड़ा धर्म, थोड़ा-थोड़ा अधर्म, थोड़ा पाप, थोड़ा पुण्य । आज प्रायः हरेक व्यक्ति परमात्मा में तो विश्वास रखता है, पर निजी जिंदगी को ऐश के साथ जीना चाहता है। आज के युग में व्यक्ति को पूजा-प्रार्थना, इबादत करने में दिक्कत नहीं है लेकिन निजी जिंदगी में पूरे ऐशो-आराम चाहता है। अर्थात् सत्य भी है और रिश्वत भी है, योग भी है भोग भी है, प्रार्थना भी है कामना भी है - व्यक्ति दोनों तरह से संतुलित होकर जीने का प्रयत्न कर रहा है। श्री प्रभु की भाषा में यह तीसरा धरातल है। एक दफा किसी व्यक्ति ने मुझसे पूछा - क्या वह प्रार्थना करते हुए सिगार पी सकता है। मैंने कहा - ऐसी गलती मत करना, प्रार्थना करते हुए सिगार पीने का पाप मत ढो लेना। अगले दिन उसका दोस्त आया और पूछा - क्या वह सिगार पीते हए प्रार्थना कर सकता है। मैंने कहा - बिल्कुल कर सकते हो। वह सिगार पीता हुआ प्रार्थना करने लगा। अगले दिन वे दोनों एक साथ आए और १८४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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