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महान संतों की व्यवस्थाएँ वे ही जानें । संतों से दुनिया खाली नहीं रहती। आनन्दघन जी हुए हैं जो किसी पत्थर पर थूक देते तो वह भी सोना बन जाता था। उनके थूक में भी इतनी ताकत, इतनी सिद्धियाँ पैदा हो गई थीं। अभी पिछली शताब्दी में श्रीमद् राजचंद्रजी हुए । दादागुरुदेव हुए, शांतिविजयजी हुए, रामसुखदासजी, देवरिया बाबा हुए, मदर टेरेसा हुई, और भी बहुत से संत हुए। यह दुनिया जो इतनी शृंगारित है, महान संतों के तप-त्याग के कारण ही शृंगारित है। उनके पुण्य प्रबल हैं जिनके कारण यह धरती टिकी हुई है अन्यथा यह तो पापों से इतनी बोझिल है कि कभी की समाप्त हो चुकी होती।
आज भी पृथ्वी पर ऐसे लोग हैं जो चाहे संत-जीवन में हों या गृहस्थ जीवन में, उनके पुण्य इतने प्रबल हैं कि यह धरती टिकी हुई है। हम लोग धरती पर आए हैं तो हमें भी चार फूल खिलाने चाहिए। हम सभी एक दिन ख़त्म हो जाएँगे पर सच्चाई तो यह है कि संसार के साथ संन्यास का भी आनन्द लिया जाना चाहिए। जिन्हें संन्यास का आनन्द मिल जाता है, वे न जो जन्मते हैं न ही मरते हैं। Never born never died. वे केवल मुसाफ़िर की तरह धरती पर आए, कुछ दिन रहे, जो सेवा बनी कर दी। प्रेम लिया, प्रेम दिया, उपहार लिये उपहार दिये और फिर से मुसाफ़िर बनकर किसी नए लोक की ओर प्रस्थान कर गए। मुक्ति का पथ तो जो चलते हैं वही पाते हैं। लेकिन हम सभी को यह स्मरण रखना चाहिए कि एक उम्र आनी चाहिए जहाँ पर संसार में रहते हुए संन्यास का फूल अवश्य खिल जाए।
हम अपने-अपने जीवन को ही धन्य बना सकते हैं। खुद की ज़वाबदारी खुद पर ही है। आशा है हम लोग अपनी-अपनी ज़वाबदारी समझेंगे और निभाएँगे।
सभी के लिए अमृत प्रेम । नमस्कार !
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