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________________ साधना-पथ की समझ आज हम उस शिखर की ओर बढ़ रहे हैं जहाँ से हम आने वाले पड़ावों और तलहटियों को देख और समझ सकते हैं। जैसे किसी भी कार्य को अंजाम देने के लिए उस कार्य की जानकारी होना आवश्यक है वैसे ही साधना के मार्ग में कदम आगे बढ़ाने के लिए हमें उस साधना-मार्ग की बारीकियों का परिचय होना भी अनिवार्य है। भगवान महावीर साधक को शून्य का भी अहसास कराना चाहते हैं और पूर्ण का भी। यूँ समझें, आज की चर्चा शून्य से पूर्णता की ओर बढ़ाने वाला ज्ञान होगा। इस मार्ग में हमें प्रस्थान-बिंदु का भी पता चलेगा, एक-एक पड़ाव का भी अहसास होगा, बीच की फिसलनों की भी जानकारी मिलेगी और साधक की पूर्णता और सम्पूर्णता कहाँ होती है, इसके बारे में भी जानकारी प्राप्त करेंगे। ___पहले चरण में व्यक्ति को किसी भी विषय का भलीभाँति सम्यक् और समुचित ज्ञान होना आवश्यक है बाद में तो व्यक्ति का स्वयं पर ही निर्भर होता है कि वह साधना के मार्ग पर किस हद तक स्वयं को बढ़ाना और ले जाना चाहता है। भगवान बुद्ध का चर्चित वाक्य है - अप्प दीपो भव- अपने दीप तुम स्वयं बनो। कहते हैं - एक शिष्य अपने गुरु से विदाई ले रहा था कि चलते हुए गुरु ने उसके हाथ में जलता हुआ चिराग थमाया और कहा - ले जाओ बेटा, यह १७७ www.jainelibrary.org Jain Education International For Personal & Private Use Only
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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