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________________ कबीर छोटी जाति में पैदा हुए लेकिन गंगा-किनारे जाकर लेट गए, तभी रामानंदजी उधर से आए । सुन रखा था कि गुरु बनाना ज़रूरी है, उसके बिना निस्तार नहीं होता सो गुरु किसे बनाएँ। यह भी सुना था कि रामानंदजी सुबह अँधेरे गंगा-स्नान के लिए जाते हैं लेकिन क्षुद्र व्यक्ति को शिष्य नहीं बनाते। संत महान हैं, शिष्य भी उन्हीं का बनना है, पर कैसे ? सो सुबह अँधेरे ही गंगा तट की सीढ़ियों पर जाकर लेट गए। रामानंदजी आए, सीढ़ियों से उतरने लगे कि पाँव कबीर के ऊपर पड़ गया। वे चौंके और उनके मुंह से निकल गया - राम, राम, राम । कबीरदास ने यह शब्द सुन लिया और लगा कि गुरुजी ने यह गुरुमंत्र दे दिया और वे जीवन भर राम के उपासक बने रहे। राम की उपासना करते हुए उन्होंने कहा - कबीरा कुत्ता राम का, मुतिया मेरा नाऊं। गले राम की जेवड़ी, जित खींचे तित जाऊं ।। कबीर कहते हैं - मैं तो कुत्ता हूँ, मेरी क्या औकात है। संत कभी गर्व नहीं करता, वह विनम्र ही बना रहता है। वह अपने को तुच्छ कहता है क्योंकि प्रभु का भक्त है। उसने अपना अहंभाव मिटा दिया । जो है वह प्रभु है। प्रभु का वचन उसके लिए अंतिम आदेश । जो तू है वही मैं हूँ। जिसने स्वयं को मिटा दिया वही स्वयं को कुत्ता कह सकता है। मोती मेरा नाम है और मैं रामजी का कुत्ता हूँ। मेरे गले में तो रामजी के नाम का पट्टा बँधा हुआ है। अब वे जिधर खींच लेते हैं, उधर ही चला जाता हूँ। मीराबाई जैसी संत ने तो प्रभु का नाम लेकर ही ज़हर का प्याला पी लिया और कहते हैं वह ज़हर भी अमृत का प्याला बन गया। इतना ही नहीं, वे तो वृन्दावन में कान्हा की प्रतिमा में ही समा गईं और प्रभु के दिव्य स्वरूप में विलीन हो गईं। सूरदास जिनकी आँखें नहीं थीं फिर भी मन को ही मंदिर बना लिया और दिल को प्रभु का घर और बैकुंठधाम बनाकर प्रभु-भक्ति में लीन हो गए। डायोज़नीज़ भी महान संत हुए जिन्होंने सिकंदर को भी प्रभावित कर दिया। एक बार सिकंदर डायोज़नीज़ से मिलने गया और अपना परिचय देते हुए कहा - ऐ संत, क्या तुम जानते हो कि मैं विश्व-विजेता हूँ, मैंने सारे संसार को जीत लिया है। डायोज़नीज़ ने कहा - तू विश्व-विजेता है लेकिन इस विश्व को १७४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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