SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 184
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बुद्ध भी महान संत हुए। इसी महानता के चलते उन्होंने लगातार चलते हुए गाँव-गाँव जाकर लोगों को सच्चाई का, दुःख मुक्ति का रास्ता दिया, मध्यम मार्ग स्थापित किया। उन्होंने कहने का प्रयत्न किया कि जीवन को वीणा के तारों की तरह साधो, न तो अति तप करते हुए इसे अधिक कसो और न ही भोग करते हुए इसे ढीला छोड़ो । मध्यम मार्ग अर्थात् बीच का रास्ता अपनाओ, संतुलित जीवन जिओ। महावीर और बुद्ध के समय में ही दुनिया ने एक और संत सुकरात को देखा । संयोग से उनकी पत्नी गुस्सैल प्रकृति की थी। लेकिन वे कभी क्रोध नहीं करते थे बल्कि यही कहा करते थे - ईश्वर ने अगर मुझे क्रोधी प्रकृति की पत्नी दी है तो इस बहाने रोज मेरी शांति की, समता की परीक्षा होती रहती है। यह व्यक्ति की साधुता है। पत्नी के होने या न होने से साधुता का कोई लेन-देन नहीं है, साधुता तो स्वभाव से होती है। यह तो आत्म-भाव है, अन्तरात्मा का तत्त्व है। साधुता और संन्यास अन्तरात्मा का ख़ज़ाना है, मानसिक वस्तु है। सुकरात को विषपान करा दिया गया। हँसते-हँसते ज़हर पी गए । केवल ज़हर ही नहीं पिया अपितु अपने गिरते हुए शरीर को भी देखते रहे और महापरिनिर्वाण को भी उपलब्ध हुए । जीसस भी महान संत हुए, जिन्होंने सलीब पर चढ़ाने वालों के लिए भी इतने करुणाभरे शब्द कहे कि - हे प्रभु ! इन्हें माफ़ करना, ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं। सलीब पर चढ़ाने वालों के प्रति भी करुणा-दया। जरा सोचें कि उनकी क्षमा कितनी महान होगी, उनकी साधुता कितनी महान होगी। सुकरात विष पिलाने वालों को भी प्रणाम अर्पित करते हैं कि यह शरीर जो परमात्मा से मिलने में बाधक बना हुआ था यह छूट रहा है, मैंने अभी तक जीवन का आनन्द लिया लेकिन तुमने मुझे मृत्यु का भी आनन्द दे दिया है। मैं तुम्हें प्रणाम करता हूँ। अगर मेरे मन में तुम्हारे प्रति जरा भी क्रोध या आक्रोश आ गया हो तो मैं तुमसे भी क्षमायाचना करता हूँ और तुम्हें भी क्षमा करता हूँ। __ मैं इसे साधुता कहता हूँ। यह साधुता केवल सुनने और बोलने से नहीं आती, जीवन के भीतर से अंकुरित होती है। यह तो विरले संतों में ही अन्तरात्मा से ऐसे भाव उभर कर आते हैं। शंकराचार्य, कबीरदास भी महान संत हुए हैं। १७३ www.jainelibrary.org Jain Education International For Personal & Private Use Only
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy