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________________ जितनी बन सके सेवा भी ज़रूर करें। संत की तीसरी विशेषता है - वह प्रबुद्ध और उपशांत हो। ज्ञानी भी हो और शांत प्रकृति का भी हो। इसके साथ ही प्रेम और मानवता को पूरी दुनिया तक फैलाने का प्रयत्न करे। महावीर ने सूत्र दिया - तुम प्रबुद्ध और उपशांत होकर गाँव-गाँव और नगर-नगर जाओ और मेरे शांति तथा अहिंसा के मार्ग को जन-जन तक फैलाने का प्रयत्न करो। उन्होंने यह नहीं कहा कि किसी जाति या क्षेत्र विशेष तक ही धर्म को सीमित किया जाए। उन्होंने कहा - मेरा धर्म अहिंसा में निष्ठा रखने वालों का धर्म है, इन्सानियत का धर्म है और प्राणिमात्र के लिए कल्याणकारी धर्म है। संत का कर्तव्य है कि वह भगवान के पवित्र वचनों को, पवित्र मार्ग को, शांति, प्रेम, करुणा, विश्व-प्रेम और विश्व-शांति के मार्ग को जन-जन तक फैलाने का उपक्रम करे । प्रबुद्ध होना संत का गुण होना चाहिए। अगर अकड़, अशांत, क्रोधी स्वभाव वाला होगा तो छोटी-छोटी बातों पर भी स्वयं को संयमित नहीं रख पाएगा। इसलिए उसका ज्ञानी और शांत होना ज़रूरी है। उसके भाव शुद्ध होने चाहिए और जीवन ऊँचा, ताकि लोग उसे देखकर जीना सीख सकें, उसे अपना आदर्श बना सकें, प्रेरणा ले सकें। संतों को याद रखना चाहिए कि केवल उपदेश ही प्रभावी नहीं होते, जीवन और आचरण भी कुछ बोलता है। व्यक्ति का जीवन जो बोलता है वह वचन से हज़ार गुना अधिक प्रभावी होता है। दुनियाँ में अनेकों महान संत हुए हैं। महावीर भी महान कोटि के संत थे। अगर ग्वाले ने उनके कानों में कीलें ठोक दी तो उसके लिए भी अपने संत स्वभाव की पहचान देते हुए उन कीलों को भी सहजता से बर्दाश्त कर लिया। और जब वैद्यराज ने उन कीलों को निकाला तो जो पीड़ा हुई उसमें उन्होंने इतनी-सी ही प्रतिक्रिया की - मैं तो साधनाकाल में था, संत-जीवन में था इसलिए इन कीलों के दर्द को सहन कर गया, पर यह तो प्रकृति की व्यवस्था है कि इन्सान जैसा करता है वैसा ही उसे लौटकर मिलता है। तो इसने जो कीलें ठोकी हैं इस पाप-कर्म का उदय जब उस ग्वाले के आएगा तो वह बेचारा कैसे सहन करेगा ! उस करुणामूर्ति ने इतनी करुणा दिखाते हुए उसके प्रति भी क्षमाभावना रखी और कहा कि उसका भला हो, ईश्वर उसे माफ़ करे । १७२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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