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________________ वक़्त-बेवक़्त में विसर्जन के भाव ज़रूर रखने चाहिए । केवल अर्जन संग्रह ही न करें, जितना बन सके अर्पण भी करते रहें। अगर धन नहीं लगा सकते तो हमें जो हुनर आता है वही दूसरों को सिखा दें। हुनर भी नहीं आता और आप शिक्षित हैं तो किन्हीं गरीब बच्चों को पढ़ा दें। यह ज्ञान का विसर्जन है। अपने हाथों से कुछ-न-कुछ बाँटते रहना चाहिए। हम लोगों का यह फ़र्ज़ होना चाहिए कि मैं भी एक दीपक बनकर रोशन होऊँ और मेरी वज़ह से अन्य चार लोगों को भी रोशनी मिलती रहे। यही तो धर्म का अर्थ है कि खुद भी सुखपूर्वक जीना और दूसरों को भी सुखपूर्वक जीने में मदद करना । स्वयं का भी मंगल हो और दूसरों का भी मंगल और हित सधे, यही हमारा प्रयत्न होना चाहिए। हमारे द्वारा किसी का हित हो जाए । बोलने से, कार्य से, व्यवहार से, चिंतन से, प्रवचन से, किसी भी तरह से हो, पर हित हो । स्वयं का अहित करना भी गलत है और दूसरों का भी अहित करना गलत है। दूसरों को सुख पहुँचाना पुण्य है तो खुद को दुःख पहुँचाना भी पाप है। व्यक्ति ऐसा कार्य नहीं कर सकता कि जिसमें दूसरों को सुख पहुँचाने की खातिर खुद दुःख उठाता रहे। ऐसे शिव-शंकर कम होते हैं जो दूसरों के हिस्से का विष भी अपने हलक में उतार लेते हैं। हम सामान्य इन्सानों के लिए यही धर्म है कि स्वयं के साथ दूसरों का भी मंगल हो। धर्म चाहता है कि वह पाँवों का घुघरू बने ताकि लोगों को उन धुंघरुओं की थिरकन का आनन्द मिल सके । धर्म चाहता है वह लोगों के गले का हार बने ताकि लोगों का जीवन अधिक शृंगारित हो सके । धर्म चाहता है कि वह लोगों के शीश का मुकुट बने ताकि उसका शीश और अधिक उन्नत हो सके । यह तभी होगा जब हम पूरी नैतिकता, प्रेम, मर्यादा, अहिंसा, संयम और जीवन-मूल्यों के साथ उसे जिएंगे। एक राजा ने ऐसा ही किया। उसके राज्य में चारों ओर शांति थी। प्रजा प्रसन्न और संतुष्ट थी। पर उसका एक पड़ोसी राजा इस स्थिति के बिल्कुल विपरीत था। उसके राज्य में शिक्षा, रोजगार और धन का अभाव था। वह समझ नहीं पा रहा था कि अपने राज्य में वह सुव्यवस्था कैसे कायम करे । सो वह पड़ोसी राजा से मिलने गया। उसने पड़ोसी राजा से पूछा - मेरा राज्य छोटा १६० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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