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________________ विवाह करवाया, आजीविका की व्यवस्था दी - ऐसे माता-पिता के प्रति अपने फ़र्ज़ निभाने को भी अपना धर्म समझें। जैसे माता-पिता ने जन्म देकर अपने फ़र्ज़ निभाए हम भी उनके ऋण से उऋण होने का प्रयास करें। सबसे बढ़कर तो उन्होंने हमें मानव-शरीर दिया जिसके चलते हम धर्म-कर्म-संसार-ईश्वर-आत्मज्ञान कुछ भी हासिल कर सकते हैं। मैं सामायिक करने को, मंदिर जाने को, ईश प्रार्थना करने को भी धर्म कहता हूँ, पर मैं मानता हूँ कि ईश्वर की पूजा से पहले माता-पिता की पूजा हो। वे हमारी पूजा के पहले पात्र और पहले हक़दार हैं। अगर उनका सम्मान नहीं कर पाते तो गुरुजनों के सम्मान का कोई अर्थ नहीं है क्योंकि गुरु तुम्हें बाद में मिले । ईश्वर की पूजा से पहले माँ-बाप की पूजा हो । हो सकता है ईश्वर ने हमें जन्म दिया हो लेकिन पहला भोजन दूध के रूप में माँ ने ही दिया । यह ईश्वर की रहमत है, अनुग्रह है कि हम धरती पर आए, पर माता-पिता ने ही जीवन दिया। जो माता-पिता ने किया उसे तौला या मापा नहीं जा सकता। फिर भी अगर हम उसका आधा भी कर देते हैं तो भी समझ लेना कि हम धार्मिक हैं। केवल माथे पर तिलक लगाने और धूप-दीप कर देने से ही धर्म नहीं होता। ये धर्म के प्रतीकात्मक स्वरूप हो सकते हैं लेकिन जन्म-दाताओं की इज़्ज़त और सेवा ही धर्म है। अपनी ओर से उन्हें ठेस न पहुँचे इसकी जागरूकता रखें। कभी ठेस लगा भी दें तो क्षमायाचना कर लें। उनकी बातों का बुरा न मानें। बड़ों द्वारा कही गई बातें चौराहे की लालबत्ती होती हैं जो हमें दुर्घटना से बचाया करती तीसरा धर्म यह हो कि हम जो धन कमाते हैं, व्यापार करते हैं, आजीविका के साधन जिन हाथों से बटोरते हैं, अर्जन करते हैं, उन हाथों से थोड़ा विसर्जन भी होते रहना चाहिए। अपनी कमाई का कुछ हिस्सा अच्छे कार्यों में लगाएँ। गरीबों के लिए, इन्सानियत की भलाई के लिए, किसी पर दया करके उदारतापूर्वक थोड़ा-बहुत दान का धर्म करना चाहिए। किसी के आँसू पौंछना बहुत बड़ा धर्म है, दीन-दुःखी की मदद करना महान धर्म है। धन के साथ-साथ थोड़े से समय का भी विसर्जन हो। जैसे सड़क पर पड़े हुए किसी घायल को अस्पताल पहुँचाना समय का विसर्जन है। तन-मन-धन तीनों का विसर्जन होगा। Jain Education International १५९ www.jainelibrary.org For Personal & Private Use Only
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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