SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 165
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ निमित्त आज आप ही बने। मैंने पूछा - मैं कैसे निमित्त बन गया। आज तो सत्संग में भी इस तरह की कोई बात नहीं की, और न ऐसी कोई प्रेरणा भी दी, फिर मैं कैसे निमित्त बन गया। वह कहने लगा - हुआ ऐसा कि जब मैं घर पहुंचा तो मेरी माँ और पत्नी ने मुझसे कहा कि आज तो तुम धन्य हो गए कि गुरुजी ने तुम्हारा हाथ थाम लिया। तो दस-पन्द्रह मिनिट बाद जैसे ही मुझे गुटखा खाने की तलब उठी, मेरी माँ और पत्नी मेरे पास आई और कहने लगीं - अब तुम्हें इन हाथों से गुटखा, तम्बाकू, सिगरेट का उपयोग नहीं करना चाहिए। मैंने पूछा - क्यों नहीं करना चाहिए, मैं तो रोज पीता हूँ। कहने लगीं - जिस हाथ को गुरुजी ने थाम लिया है अब उन हाथों में अगर सिगरेट आती है तो यह तुम्हारे हाथों का नहीं उन हाथों का अपमान होगा जिन्होंने तुम्हारे हाथों को थामा है। तो प्रभु इसीलिए मैं आपके पास नियम लेने के लिए आया हूँ। उनकी बातें सुनकर मैं भी आह्लादित हुआ कि मैंने तो यूँ ही किसी का हाथ थामा था लेकिन उनके जीवन में अच्छा सुकून आने का संयोग था और माँ ने इसे पॉज़िटिव अर्थों में लिया, बेटे के लिए प्रेरणा का पैगाम बना दिया और व्यक्ति का जीवन बदल गया। मैं भी गद्गद हो गया। इस तरह तो सभी को खुशी मिलेगी। यह परिवर्तन कहलाएगा। इसे ही जीवन में धर्म का प्रभाव कहेंगे। धर्म तो वही है जो हमारे जीवन के साथ जुड़े। अन्यथा धर्म पर चाहे जितने प्रवचन हो जाएँ, कितनी ही किताबें अपने घर में सजा लें लेकिन बोलने और सुनने मात्र से तो व्यक्ति धार्मिक हो नहीं जाता। अपनी ही बात करता हूँ यह जरूरी नहीं है कि मैं जितना बोल रहा हूँ उसे १००% जी चुका हूँ। अगर मैं कुछ बोलता हूँ तो जान लें कि उसको जीने का प्रयत्न कर रहा हूँ, जीवन के साथ जोड़ने का प्रयास कर रहा हूँ और उसी रास्ते पर चल रहा हूँ और आप भी उसी रास्ते पर चलें यही कहने का उद्देश्य है। दुनिया में जितने संत ज्ञान की बात करते हैं, १००% तो उसे जीते नहीं हैं। हाँ, जीने का प्रयत्न सभी लोग करते हैं। शेष तो व्यक्ति की नियति है, प्रारब्ध है कि वह चाहता तो है कि जिए, पर जी नहीं पाता। गुरु द्रोण से युधिष्ठिर और दुर्योधन दोनों ने एक जैसी ही शिक्षा प्राप्त की थी लेकिन फ़र्क यह रहा कि एक व्यक्ति उस धर्म को जी गया और दूसरा जीवन १५४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy