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आचरण, गलत चिंतन हमारे द्वारा न हो। गांधीजी के तीन बंदर - बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो, बुरा मत कहो - यही संदेश देते हैं कि हमें गलत कर्म नहीं करना चाहिए। अगर हम गलत करेंगे तो हमारा आभामंडल ख़राब होगा, हमारे मन के विचार ख़राब होंगे, मन के विचार ख़राब हुए तो वाणी भी ख़राब होगी। अगर ग़लत वाणी का उपयोग करेंगे तो लोगों के साथ हमारे संबंध कट जायेंगे, लोग हमें पसंद नहीं करेंगे, वे हमसे दूर रहेंगे। इस तरह ग़लत वाणी हमें तुरंत परिणाम दे रही है। ग़लत कर्म करने से हमारी आत्मा गिरेगी, मन दूषित होगा, समाज में प्रतिष्ठा फीकी पड़ेगी। इस तरह ग़लत वाणी, ग़लत आचरण या ग़लत चिंतन तुरंत परिणामकारी होगा।
आत्मा और मन की, जीवन और आचरण की यही तो शुद्धि है कि हम अपनी वाणी, चिंतन, कार्य और व्यवहार को निर्मल बनाएँ । मानवीय स्वभाव के कारण इसमें कोई दोष लग जाए, अथवा कोई गलती हो जाए तो क्षमाप्रार्थना कर लें। हर शाम को हमें यह प्रतिक्रमण या प्रायश्चित्त कर लेना चाहिए कि हे प्रभु ! दिन भर में मेरे द्वारा किसी भी प्रकार का ग़लत चिंतन हुआ हो, ग़लत वाणी बोली हो, ग़लत व्यवहार या कर्म हुआ हो, उसके लिए मैं सरल हृदय से क्षमा-प्रार्थना करता हूँ। हमें हर दिन ग़लत की क्षमा माँग लेनी चाहिए।
धर्म वर्तमान से जुड़ा हुआ है, ऐसा हमें सोचना चाहिए, ऐसा ही स्वीकार करना चाहिए । तदुपरान्त भी जीवन में कुछ परिणाम मिले हैं या नहीं मिल पाए हैं तो प्रारब्ध और पूर्व जन्म के कर्म, उन कर्मों के अनुबंध ऐसे रहे कि आपकी चाहत पूर्ण नहीं हो पाती। व्यक्ति परिश्रम और पुरुषार्थ करता है लेकिन ज़रूरी नहीं है कि हर परिश्रम का परिणाम मिले ही। संभव है किसी परिश्रम का परिणाम आने में पचास वर्ष लग जाएँ। अगर अब्दुल कलाम देश के राष्ट्रपति बने तो सत्तर वर्ष की ज़िदंगी बिताने के बाद ही राष्ट्रपति बन सके। लिंकन अमेरिका के राष्ट्रपति बने तो कितनी ही बार अवरोध आए, उनके पुण्य इतने प्रबल नहीं थे कि पहले चुनाव में ही राष्ट्रपति बन सके । लेकिन सतत प्रयास से
और आखिर प्रबल पुण्योदय से राष्ट्रपति बनने में सफल हो सके । यह तय है कि इन्सान जो बनना चाहता है बनता ही है। किस्मत उसी को परिणाम देती है जो किस्मत से अपने परिणाम पाना चाहता है। फ़र्क इतना ही पड़ता है कि किस्मत
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