SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 147
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ से सूरत, सूरत से मुंबई जाऊँगा। मुंबई से हैदराबाद जाना है। वहाँ से लौटकर मारवाड़ जाना है, वहाँ प्रतिष्ठा करवानी है। वहाँ से चातुर्मास करने के लिए मुंबई जाना है। ललितप्रभ जी को भी शायद मज़ाक करने का मन हो गया होगा। उन्होंने कहा - महाराज ! आपको इतनी जगह जाना है, मोक्ष भी जाना है - यह आपको याद है या भूल गये ? प्रभु के दरबार में भी आपको जाना है यह याद है या नहीं ? कौन किसको महत्त्व दे रहा है यह देखने जैसा है। धन को महत्त्व देना पत्नी, बच्चे, व्यापार, संसार, दुनियादारी को, लोकव्यवहार को महत्त्व देना है और धर्म को महत्त्व देना ईश्वर, बैकुंठ, स्वयं की मुक्ति, स्वयं के कल्याण को महत्त्व देना है। किसी के कहने से कुछ होता नहीं है यह तो खुद की चाहत है कि व्यक्ति ने धर्म का महत्त्व समझ लिया और धर्म की ओर मुड़ गया। धर्म करना किसी पर अहसान नहीं, स्वयं का कल्याण है। दूसरे को धर्म करता हुआ देखकर अपन जो आनंद-विभोर हो जाते हैं कि आपको देखकर हम धन्य हो गये। क्योंकि धर्मात्मा को देखना महात्मा को देखने के समान है और महात्मा को देखने से व्यक्ति के पुण्य जाग्रत होते हैं। थोड़े दिन पहले एक युवक मेरे पास एक कार्ड लेकर आया। मैंने उसे पढ़ा और वहीं से उस संत को प्रणाम समर्पित किया जिसने यह कार्ड भेजा था। मैं उस संत से पहले कभी मिला नहीं था लेकिन उनकी प्रेरणा से हो रहे नेक कार्यों की वजह से मैं अभिभूत हो गया। मैंने पढ़ा कि उस संत की प्रेरणा से गौशालाएँ चलती हैं। वे पथमेड़ा के संत हैं, जिनकी प्रेरणा से एक लाख गौएँ पालित और पोषित होती हैं। मुझे लगा कि वे जो भी हों, धन्य हैं जिनके कारण एक लाख गौ माताओं की व्यवस्था होती है। हम तो दो गायों को घास डाल देते हैं और सोचते हैं कि हम भी कुछ दान-धर्म, दया-करुणा कर रहे हैं। उस संत का त्याग तो समझें कि जो प्रतिदिन एक लाख गौओं के लिए घास की व्यवस्था कर रहे हैं। जो भी गौओं के लिए धन खर्च कर रहे हैं वह एक यज्ञ है। मैं स्वामी रामसुखदासजी महाराज से मिला हूँ और उनकी विरासत को भी पढ़ा है। उन्होंने लिखा है मेरे मरणोपरांत मेरी देह का दाह-संस्कार गंगाजी के किनारे किया जाए। और गंगा किनारे न जा सकें तो ऐसे स्थान, ऐसी ज़मीन १३६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy