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________________ पर दाह-संस्कार किया जाए जहाँ प्रतिदिन सौ-पचास गाय-माताएँ चरने के लिए, बैठने के लिए आती हों। क्योंकि जहाँ सौ-पचास गायें आकर बैठती हैं वह जगह मुकुंद-माधव-गोविंद की तीर्थभूमि बन जाती है। जहाँ तक मुझे जानकारी है हिंदू समाज में ऐसे त्यागी-तपस्वी संत कम ही हुए हैं। वे हिंदू समाज के, भारत के गौरव हैं। उन्होंने विरासत में यह भी लिखा कि जब मेरा शरीर छूट जाए तो उसका कोई ड्रामा न किया जाए, कोई प्रचार न किया जाए, अख़बारों में खबर न छपाई जाए । बस प्राणांत के एक घंटे बाद ले जाकर दाहसंस्कार कर दिया जाए। कहीं कोई सूचना न दी जाए, न ही मेरे नाम से कोई चढ़ावा हो, न स्कूल-कॉलेज बने, न ही कोई संस्था बने, न ही कोई जमीन खरीदी जाए। अगर चौबीस घंटे की मोहलत दी जाती तो उस संत के दाह-संस्कार के समय दस लाख लोग एकत्रित हो जाते । लेकिन उनकी धर्म भावना देखें कि किसी को सूचना न दी जाए, कोई सजावट न की जाए, जो कपड़े पहनते हैं उसी की पोटली बनाई जाए, उसी में काया लपेट दी जाए और अन्त्येष्टि कर दी जाए। तो कुछ संत भी ऐसे होते हैं जिन्हें कह सकते हैं कि वे भगवान का दूसरा कई घटनाएँ हैं जिन्हें मैंने देखा है, समझा है और अन्तर्मन में अनुमोदना के भाव का इतना आनन्द लिया है कि जीभ मीठी होती है, मन मधुर हो जाता है। उन्हें जब भी याद करता हूँ पुलक-भाव से भर जाता हूँ। इसीलिए महावीर यह निष्कर्ष देना चाहते हैं कि कुछ गृहस्थ भी ऐसे होते हैं जो संतों जैसे होते हैं या संतों से भी ऊँचे हुआ करते हैं और कुछ संत भी ऐसे होते हैं जो धरती के भगवान बन जाते हैं। उनका त्याग और तप उन्हें महान बना देता है। मेरे सामने अगर प्रभु के नाम पर बना हुआ मंदिर एक ओर हो और दूसरी ओर प्रभु को अन्तर्मन में जीने वाले सिद्ध पुरुष हों तो मैं भगवान के उस पत्थर के मंदिर में जाने की बजाय वहाँ जाकर प्रार्थना करने से पहले उस सिद्ध पुरुष के पाँव छूना पसंद करूँगा, उन्हें पहले मत्था टेकूँगा । हमें ऐसे संत पुरुष मिलें यह जन्मों-जन्मों के सौभाग्य से होगा। वह बड़भागी होगा जिसे ऐसे सिद्ध देवपुरुष, सद्गुरु, दिव्य पुरुष के दर्शन हुए। सच पूछा जाए तो लोगों को कहाँ ऐसे सत्पुरुष मिलते हैं। उन्हें तो वही मिलते हैं जिस स्थिति में वे स्वयं होते हैं। जीवन में ऐसे दैवीय Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelik३७rg
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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