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________________ इतने दिन से आकर मुझे पवित्र वाणी सुनाते रहे, आपकी बातों को सुनकर मुझे अपने पूर्व जन्मों के कृत पापों को धोने के प्रबल भाव होते जा रहे हैं। मेरी इच्छा हो रही है कि अगर आप मुझे त्रिवेणी तक पहुँचा दें तो मैं आपको मोतियों से भरे हुए पाँच घड़े दूँगा । लालच जो न करवाए सो कम है। पंडित तैयार हो गया उसे त्रिवेणी की यात्रा करवाने के लिए । एक ठेलागाड़ी की व्यवस्था कर, उस पर मगर को डालकर त्रिवेणी की यात्रा के लिए चल पड़ा । त्रिवेणी पहुँचकर उस मगरमच्छ को पानी में उतारा गया। पानी में डुबकी लगाकर वह मगर आनन्द - विभोर हो गया। खुशी के मारे उसकी आँखों से अश्रु ढुलकने लगे। वह पंडित को बार-बार साधुवाद देने लगा। उनका कृतज्ञ हुआ कि पंडित जी की वज़ह से त्रिवेणी स्नान करने का आनन्द मिल पाया। वादे के मुताबिक उसने पाँच घड़े मोतियों के पंडित को दे दिये। घड़े लेकर जब पंडित जी जाने लगे तो वह घड़ियाल जोर से मुस्करा दिया। उसकी हँसी सुनकर पंडित जी ठिठके और हँसने का कारण पूछने लगे । घड़ियाल ने कहा क्या करोगे जानकर, रहने दो। पंडित जी बोले- नहीं, नहीं । तुम्हें बताना ही पड़ेगा। ठीक है, तब आप ऐसा कीजिए कि आप वहीं जाइए जिस गाँव से हम लोग आए हैं, वहाँ एक धोबी रहता है, उसके पास जो गधा है वही मेरी हँसी का राज़ बता सकता है। उसने सोचा ऐसी क्या रहस्यमय बात है कि गधा उसे ज्ञान करवाएगा । पास जाकर कहा पंडित जी रवाना हुए, अपने गाँव पहुँचे तथा उस धोबी को ढूँढ़ा और गधे के क्या तुम मुझे बता सकते हो कि वह घड़ियाल क्यों हँसा ? अचानक गधा मनुष्य की भाषा में बोलने लगा और कहा - महाराज बात तो हँसने की ही है। पंडितजी ने पूछा - ऐसी क्या बात है ? तब गधे ने कहा - सुनो ! सौ साल पहले इस नगर में एक राजा हुआ करता था । इसी तरह राजा धर्म - शास्त्रों का श्रवण करता था और सुनते-सुनते उसके मन में भी भाव उठ गये कि वह यहाँ से हरिद्वार जाए और वहाँ जाकर गंगा स्नान करे । उसने अपने सबसे विश्वसनीय सेवक को, जो अंगरक्षक भी था, अपने साथ लेकर राजा निकल पड़ा। हरिद्वार पहुँच कर उसने गंगा स्नान किया। गंगा स्नान करते हुए वह इतना आनन्द-विभोर हो गया कि उसने वापस लौटने का विचार त्याग दिया - १३० Jain Education International - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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