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गृहस्थ धर्मके सरल नियम
बहुत पुरानी कहानी है। एक ब्राह्मण पंडित जगह-जगह जाकर गीता का पाठ सुनाया करते थे। एक बार वे अपने गाँव से दूसरे गाँव के सेठ के निमंत्रण पर उन्हें गीता-पाठ सुनाने के लिए जा रहे थे। रास्ते में एक नदी आई। वहाँ एक मगरमच्छ रहता था। उसने ब्राह्मण से गीता-पाठ सुनाने का अनुरोध किया और कहा कि इसके एवज में वह उन्हें मोतियों की माला उपहार में देगा। ब्राह्मण तैयार हो गया क्योंकि जो भी उसे धन देगा वह उसे गीता का पाठ सुना देगा। ब्राह्मण देव ने उस मगरमच्छ को गीता का पाठ सुनाया और उसने अपने वादे के मुताबिक मोतियों का हार ब्राह्मण को भेंट में दे दिया। गीता-पाठ सुनकर उस मगर को बहुत आनन्द आया। उसने कहा - अगर तुम कल भी मुझे अन्य कोई शास्त्र सुनाओगे तो मैं तुम्हें मोतियों का एक हार और दूंगा।
धन के लोभ में आकर वह ब्राह्मण तैयार हो गया और दूसरे दिन पुनः वहाँ पहुँचा तथा किसी अन्य पवित्र शास्त्र का पाठ किया । उसे सुनकर मगरमच्छ प्रसन्न हुआ तथा एक हार और दे दिया। साथ ही अनुरोध भी किया कि दूसरे दिन आकर फिर किसी अन्य पवित्र शास्त्र का श्रवण करवा दें। कहते हैं इस तरह बहुत दिन बीत गए, पंडित जी वहाँ आते रहे और वह मगरमच्छ उनके पवित्र उपदेश को सुनता रहा । एक दिन उस घड़ियाल ने कहा – पंडित जी आप
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