SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 114
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कहूँगा कि दो विपरीत ध्रुवों के बीच में व्यक्ति द्वारा तटस्थ रहना ही साधना है। क्योंकि परिस्थितियाँ तो बनती और बिगडती हैं । कोई भी अरबपति ऐसा नहीं हुआ जिसकी सात पीढ़ियाँ अरबपति रही हों । संसार का नाम गति है । गति में नीचे का पहिया ऊपर और ऊपर का पहिया नीचे आता है । इसलिए व्यर्थ का घमंड करने की बजाय कि आज हमारे पास इतना ज्ञान, इतना सौन्दर्य या इतना धन है व्यक्ति को इस बात का बोध रखना चाहिए कि रूप भी ढलता है, ज्ञान और बुद्धि की क्षमता भी कमज़ोर होती है और लक्ष्मी चंचल है। उसका पता नहीं आज है और कल नहीं है । जब हर चीज ही परिवर्तनशील है तो इन्सान किसी भी बात को लेकर अपने चित्त में खेद या घमंड क्यों करे । जीवन तो खेल है चाहे चित गिरे या पट । जब दो खिलाड़ी खेलेंगे तो एक हारेगा यह भी तय है। जीवन में भी कोई कार्य करें उसके दो ही परिणाम निकलेंगे या तो सफलता मिलेगी या असफलता मिलेगी । इन्सान चलेगा तो या तो गिरेगा या पहुँच जाएगा। दो में एक रास्ता हमेशा खुला रहता है परिस्थितियाँ बदलती हैं और इस परिवर्तन का नाम ही संसार है । ज्ञानियों ने संसार को समझने की कोशिश की है इसीलिए वे संसार के प्रति मूर्च्छित नहीं हुए, उन पर माया का प्रभाव न पड़ सका । 1 - 1 कहते हैं एक व्यक्ति जंगल से जा रहा था कि तभी उसने शेर के दहाड़ने की आवाज़ सुनी। वह भागा, जंगल में घास-फूस उगी हुई थी । उसे सही रास्ता नज़र न आया। वह दौड़ते-दौड़ते एक गहरे गड्ढे में गिर गया, कुएँ में गिर गया। गिरते ही उसके हाथ में पेड़ की जड़ आ गई जो उसने पकड़ ली। लेकिन उसने देखा कि जिसको उसने पकड़ा है उसे चूहा काट रहा है, उसने देखा जिस पेड़ की वह जड़ है उसे हाथी चोट मार रहा है, अपनी सूँड से उसे हिलाने और गिराने की कोशिश कर रहा है । वह यह भी देख रहा है कि अगर बाहर निकल आया तो भी ख़तरा है, भीतर नज़र डाली तो चौंक गया क्योंकि वहाँ भी एक साँप फन फैलाए था कि वह नीचे गिरे तो डँस ले। वह पसोपेश में पड़ा हुआ था कि क्या करे तभी देखा कि जहाँ वह लटका है वहाँ से अचानक एक शहद की बूँद उसकी नाक पर आकर गिरी और होठों से छूती हुई जिह्वा पर आ गई। उसे बहुत स्वाद लगा, आनन्द और मज़ा आ गया । वह कुछ और सोचे कि तभी Jain Education International - For Personal & Private Use Only १०३ www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy