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________________ एक बूंद और टपकी, उसे फिर स्वाद मिला। उसने ऊपर-नीचे देखा कि एक बूंद और आ गिरी, उसे स्वाद मिलने लगा। उसके दोनों ओर मौत खड़ी थी लेकिन व्यक्ति मौत की चक्की में पिसते हुए भी कहीं-न-कहीं स्वाद लेने की कोशिश कर रहा है और इसी का नाम संसार है। व्यक्ति यही सोचकर संसार में जीता है कि शायद दो बूंद शहद की और मिल जाएँ। अज्ञानी यही देखता है कि शायद दो बूंद और मिल जाएँ लेकिन ज्ञानी व्यक्ति उस शहद की बूंद को देखने के बजाय ऊपर और नीचे दोनों ओर खडी हई मौत को देखता है और सोचता है कि अब बीच में मुझे क्या करना चाहिए। इसीलिए कबीर ने कहा था चलती चक्की देखकर, दिया कबीरा रोय । दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोय ।। ये दो पाट हैं - कभी सुख के, कभी दुःख के, कभी प्रशंसा के, कभी निन्दा के, कभी आज्ञाकारिता के, कभी अवज्ञा के, ऐसी स्थिति में ज्ञानी व्यक्ति जाग्रत हो जाता है और समझ जाता है कि यह परिस्थिति है जो कभी अनुकूल और कभी प्रतिकूल हो जाती है। वह मोहित नहीं होता क्योंकि उसने दोनों परिस्थितियों को जान लिया है, समझ लिया है। वह ज्ञानी हो गया है। ज्ञानी वह नहीं है जिसने बहुत-सी किताबें पढ़ ली हैं या जो प्रोफेसर हो गया है या जिसने डॉक्टरेट अथवा महोपाध्याय की डिग्री हासिल कर ली है। ज्ञानी वह है जिसने इन दो पाटों को समझ लिया और इनसे निकल पड़ा तब उसका ज्ञान जीवन में चरितार्थ हो गया । ज्ञान यही है कि सुख और दुःख हमारे साथ-साथ ही चलने वाले हैं इसीलिए किसी भी परिस्थिति के प्रति खिन्न और प्रसन्न होने की बजाय, हमें सहज होने की कला सीख लेनी चाहिए। कोई आकर पाँवों में झुककर प्रणाम कर दे तो उससे स्वयं को बड़ा समझने की ज़रूरत नहीं है। वह प्रणाम परम पिता परमेश्वर को समर्पित कर देना चाहिए। तब यही भाव रखना चाहिए कि हे प्रभु, इसके प्रणाम तुम स्वीकार करो, मैं तो तटस्थ रहूँ। अगर प्रणामों को अपने तक ही सीमित रखा तो इतना अहंभाव पोषित होगा कि अगर किसी ने प्रणाम न किया तो चित्त उद्विग्न और खिन्न हो जाएगा । यह मानो ही मत कि तुम प्रणम्य हो, यही मानो कि प्रभु ही सदा प्रणम्य हैं। मैं तो केवल मूर्ति की तरह सामने खड़ा हूँ। मैं १०४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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