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________________ सुखकी राह HA gro PRESETHel o a2016 2006anoger '3040 * C .." .. 1300+ A यह संसार का सत्य है कि यहाँ प्रत्येक वस्तु और प्रत्येक परिस्थिति के दो पहलू होते हैं - एक पॉजिटिव, दूसरा निगेटिव । एक धूप का, दूसरा छाँव का। ऐसे लगता है जैसे कि दुनिया में धूप और छाँव का खेल चलता रहता है। कभी दुःख चलता है कभी सुख चलता है। कहीं किसी के जन्म पर थाली बजती है तो कहीं किसी की मृत्यु पर आँसू छलकते हैं। कहीं किसी के मिल जाने पर खुशियाँ छा जाती हैं तो कहीं किसी के बिछुड़ जाने पर मन मायूस हो जाता है। लेकिन मुख्य बात यह है कि सुख और दुःख एक ही गाड़ी के अलग-अलग पहिए हैं, एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। दोनों में से किसी एक को अलग नहीं किया जा सकता। जैसे इन्सान की परछाईं उसके साथ चलती है वैसे ही सुख के साथ दुःख और दुःख के साथ सुख की परछाईं चलती है। लेकिन साधक व्यक्ति सुख-दुःख, धूप-छाँव के खेल को सचेतनतापूर्वक समझ लेता है और अपनी ज्ञान-दृष्टि के कारण दोनों ही स्थितियों में सहज रह लेता है। तारीफ़ मिलने पर प्रायः व्यक्ति अहम् भाव को पोषित करता है और निन्दा सुनने पर मन आर्त और रौद्र ध्यान करने लगता है। सचेतन साधक अनुकूलताओं को पाकर न तो घमंड करता है और न प्रतिकूलताओं को पाकर चित्त में ग्लानि या खेद का अनुभव करता है । मैं तो साधना का भाव दो शब्दों में १०२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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