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बिल चुकाने की बात आती है तो डॉक्टर कहता है - आप इसकी चिंता न करें, घर जाएँ, मैं बिल घर ही भिजवा दूंगा। महिला रवाना होती है। डॉक्टर बिल बनते हुए देखता है कि नाम पर नज़र जाती है, वह उस महिला का नाम पढ़ता है, पता पढ़ने को मिलता है, वह चौंक जाता है कि क्या यह वही महिला है ! बिल लेकर वह उस मकान पर जाता है, और देखता है कि अरे, यह तो वही मकान है। तब अपने ब्रीफकेस में से अपना लेटर-पैड निकालता है और लिखता है - माँ जी, मैंने ऑपरेशन किया है इसलिए मुझे निश्चित ही भुगतान मिलना चाहिए था लेकिन मुझे यह बताते हुए गौरव होता है कि इसका भुगतान मुझे पच्चीस वर्ष पूर्व ही मिल गया था। वही एक गिलास दूध पीने वाला बच्चा। यह पत्र लिफाफे में डालकर वह उस महिला को देकर रवाना होता है।
महिला पत्र निकालकर पढ़ती है, वह केवल इतना ही कहती है - ओह, मेरे बेटे ! इतना कहकर वह ज़मीन कर गिर पड़ती है कि डॉक्टर की नज़र पुनः उस महिला पर जाती है। वह दौड़कर वापस आता है और माँजी को उठाता है। उस स्नेहभरे आलिंगन से माँजी होश में आ जाती हैं और दोनों प्रेमपूर्ण आलिंगन में आबद्ध हो जाते हैं।
अगर तुम दीन-दुःखियों के लिए हाथ बढ़ाते हो तो प्रभु किसी-न-किसी माँ का रूप रखकर तुम्हें गले लगाने को आतुर हो जाएँगे। राग-द्वेष हमारे लिए कर्म के बीज का निमित्त बनते हैं। ये कड़वे बीज हमारे जीवन में न बोए जा सकें इसलिए राग की चिंता छोड़ो और द्वेष की चिंता भी छोड़ें और अपना सहज जीवन जीएँ, वीतद्वेष रहें, किसी से वैर-विरोध न रखें, सबके साथ प्रेमपूर्ण व्यवहार करें, अपने जीवन में प्रेम की मिठास बढ़ाएँ। कुल मिलाकर प्रेम से जीएँ, आनन्द से जीएँ, वैर-विरोध का त्याग करें।
अपनी ओर से प्रेमपूर्वक इतना ही निवेदन करता हूँ।
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