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महिला ने कहा – उसकी ज़रूरत नहीं थी। खैर, दोनों बच्चों को बुलाया गया। जब उन्हें मालूम पड़ा कि माँ के स्तन कैंसर का ऑपरेशन हो चुका है, दोनों बहुत नाराज़ भी हुए। पर माँ ने कहा-बेटा, मैंने स्वयं को; तुम लोगों को नहीं, प्रभु को सुपुर्द किया था। तुम लोग मुझे बहुत प्रिय हो, लेकिन सचाई यह है कि तीस साल पहले जब तुम्हारा जन्म होने वाला था, मेरी हालत बहुत बिगड़ गई थी। डॉक्टर ने तुम्हारे पिता से कहा-माँ या बच्चा दोनों में से किसी एक को ही बचाया जा सकता है। तब तुम्हारे पिता ने काग़ज़ों की खानापूर्ति करते हुए कहा था जिसे भी बचा सकते हों बचा लें। और मैं ऑपरेशन थियेटर में ले जाई जा रही थी। बेटा, मुझे लगा अब भी एक सहारा बचा है और तब मैंने ईश्वर को याद किया और कहा-हे प्रभु! मैं स्वयं को तुम्हें समर्पित कर रही हूँ। मैं भी बच जाऊँ और मेरा बच्चा भी बच जाए। बेटा, तब ऊपर वाले के भरोसे तु भी बचा और मैं भी बची। तब भी ऊपरवाले के भरोसे मैं बची और आज भी उसी ने जीवनदान दिया है।
ऊपरवाले के हाथ हज़ार हैं, उसके नैन हज़ार हैं-वह किस रूप में आकर हमें थाम लेगा कहा नहीं जा सकता।
चिंतामुक्त जीवन जीने का एक सरल मार्ग यह भी है कि -बीती ताहि बिसार दे। जो हो गया सो हो गया अब वह लौटकर आने वाला नहीं है। बीते का चिंतन न कर, छूट गया जब तीर, अनहोनी होती नहीं, होती वह तक़दीर। अगर हमें याद रखना है तो अच्छी चीज़ों को याद रखें और बुरी चीज़ों को भूल जाएँ।
___ भीतर आती साँस अच्छी यादों को अन्दर लेने की प्रेरणा देती है, बाहर निकलती साँस बुरी यादों को बाहर उलीचने का बोध देती है। साँस के साथ अच्छाइयों को अंदर लो, साँस के साथ बुराइयों को बाहर छोड़ो। मीरा तो विपरीत वातावरण के बावजूद यूँघरू बाँधकर नाच उठी, फिर हम ही क्यों बेड़ी बाँधकर बैठे रहें।
बचपन में सुना हुआ वो गीत सदा अपने पल्ले बाँध लें-समझौता ग़मों से कर लो, जिंदगी में ग़म भी मिलते हैं। पतझड़ आते ही रहते हैं, कि मधुबन फिर भी खिलते हैं। समझौता ग़मों से कर लो...। जिंदगी में समझौतावादी नज़रिया होना चाहिए। प्रकृति की व्यवस्थाओं में राज़ी रहने की आदत होनी
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