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जो आभामण्डल, जो किरणें हमारी पीठ और हमारे माथे पर बरसेंगी वो हमारे लिए प्रकाश का, रक्षा कवच का, भाग्योदय का काम करेगा। सुबह - सुबह माता-पिता को किये जाने वाले प्रणाम के साथ अपने दिन की शुरुआत करना श्रेष्ठ पुरुषों का, श्रेष्ठ बहु-बेटियों का पहला संस्कार है। यदि आप अपने माँबाप को प्रणाम करेंगे तो आपके बच्चे आपको भी प्रणाम करेंगे, इस तरह आपके पूरे परिवार के हर दिन की शुरुआत प्रेमभाव से, प्रणामभाव से, शुभकामनाओं से होगी । बासी मुंह बड़े-बुजुर्गों के आशीर्वाद लेना कुलीन घर-घरानों की बहु-बेटियों का, कुलीन बच्चों का पहला दायित्व है।
माँ के प्रति फ़र्ज़ अदा करने के लिए दूसरा काम यह करें कि चौबीस घंटों में से एक समय भोजन माता-पिता के साथ बैठकर अवश्य करें, ताकि हमें यह विश्वास रहे कि मेरी माँ को आख़िर वही भोजन मिल रहा है जो मैं, मेरे बच्चे, मेरी पत्नी और मेरे भाई लोग स्वीकार करते हैं ।
अभी कुछ दिन पहले की घटना है । हमारे पास एक महानुभाव आये । उन्होंने बताया कि एक दिन मैं खाना खाने बैठा तो मैंने अपने बेटे की बहू से कहा— आज थोड़ा दही दे दो। बहू ने कहा- पापा, दही तो नहीं है। खैर जो कुछ भी था, मैंने खाया और घर से निकल गया। अमुमन खाना खाने के बाद मैं घर लौटकर नहीं आता, पर उस दिन पता नहीं क्या संयोग था कि मैं लौटकर आया तो देखा कि मेरे बेटे की थाली में दही की कटोरी रखी थी ।
ऐसी घटना न घटे इसके लिए ही यह हिदायत दे रहा हूँ कि चौबीस घंटें में एक बार माता-पिता के साथ बैठकर खाना अवश्य खाएँ। इससे एक-दूजे के प्रति मोहब्बत भी बढ़ेगी, माँ-बाप बच्चों के साथ खाना खाकर खुश होंगे और बच्चे, भी माँ-बाप के साथ खाना खाकर सुकून पाएँगे ।
तीसरा काम यह करें कि रात को सोने के लिए जाने से पहले माता-पिता के पास जाकर इतना-सा पूछ लें कि मम्मी-पापा कोई सेवा की ज़रूरत है ? अगर कोई काम हो तो कर दीजिए । फिर अपने कमरे में जाएँ। अगर उनके शरीर के किसी भाग में दर्द है तो उनके हाथ-पैर - कमर दबा दें। दर्द से राहत पाते-पाते उनकी हमारे लिए जो दुआएँ निकलेंगी वही हमारे लिए मुस्कान का काम करेंगी।
चौथा काम यह करें कि अलसुबह अपनी बुज़ुर्ग माँ को मंदिरजी के
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