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पर चाँटा मिलता है और झूठ बोलने पर शाबासी । परिणाम स्वरूप बच्चा अपने आप झूठ बोलना सीख जाता है । अगर आप चाहते हैं कि आपका बच्चा झूठ न बोले तो आप दिनभर बात-बेबात में झूठ बोलना, बहाने गढ़ना बंद कर दें। जॉर्ज वाशिंगटन ने लिखा है कि उन्होंने अपनी ज़िंदगी में कभी झूठ नहीं बोला । तब संवाददाताओं ने उनसे पूछा - ' आप एक राजनेता हैं और आपने कभी झूठ नहीं बोला, यह कैसे सम्भव है ?' उन्होंने बताया कि जब वे छोटे थे तो किसी बात पर माँ के सामने झूठ बोल गए थे । उनकी झूठ पकड़ी गई और माँ ने दो चांटे मारते हुए कहा था कि 'तुम जैसे झूठ बोलने वाले बेटे की माँ कहलाने की बजाय मैं बाँझ कहलाना ज़्यादा पसंद करूंगी'। तब जॉर्ज को प्रेरणा मिली कि झूठ बोलना माँ का अपमान करने के समान है। इसलिए मैं कभी झूठ नहीं बोला। जहाँ ऐसे आदर्श होते हैं वहाँ बच्चे अपने-आप सत्यवादी होते हैं, नैतिक और ईमानदार होते हैं । इसलिए बच्चों को झूठ, चोरी और दुर्व्यसनों से बचाए रखने के लिए स्वयं आप के लिए सत्यप्रिय, नैतिक और व्यसनमुक्त होना पहली अनिवार्यता है ।
तीसरी बात, अपने बच्चों को आज़ादी दीजिए लेकिन इतनी भी नहीं कि आपका उन पर अंकुश न रहे। बच्चों को लायक बनाएँ, पर सावधान ! उन्हें इतना लायक भी न बनाएँ कि वे आपके प्रति ही नालायक साबित हो जाएँ । उन्हें इतनी ही आज़ादी दें कि वे आपकी बात भी सुन सकें । मारने-पीटने से बच्चे नहीं सुधरते हैं । जब तक आँख की शर्म है, बच्चा मर्यादा में बँधा रहता है और जिस दिन आँख की शर्म गई, उसी दिन से उच्छृंखलता शुरू हो गई। पिता, पुत्र, सास-बहू में जब तक आँख की शर्म बाकी है तभी तक मर्यादा है, अन्यथा जब हर बात में रोक-टोक, हस्तक्षेप और ज़रूरत से ज़्यादा अपेक्षाएँ रखेंगे तो दोनों आमने-सामने खड़े हो जाएँगे । इसलिए आँख की मर्यादा रखनी चाहिए और यह तभी सम्भव होगा जब आप एक सीमा तब बच्चों को आज़ादी दें।
बच्चों को प्यार किया जाना चाहिए, उन्हें सम्मान भी दिया जाना चाहिए, लेकिन बच्चा बिगड़ जाए तो उसे रास्ते पर लाने के लिए सख्ती करने में भी संकोच नहीं करना चाहिए। अभी मैं एक घर में था तो वहाँ पिता अपनी व्यथा सुना रहा था कि उनका बच्चा उनके वश में नहीं है । वह अपनी माँ की
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