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पहला द्वार हैं। ग़लत सोहबत किसी भी इन्सान को शैतान बनाने के लिए पर्याप्त है। ग़लत आदतें ग़लत सोहबत के कारण ही पडती हैं। जन्म से कोई बुरा नहीं होता और न ही उसमें दुर्व्यसन होते हैं। वह तो संगत का असर होता है। घर में कोई सिगरेट या शराब पी रहा है तो बच्चा कैसे अछूता रह सकता है? झूठ बोलना, चोरी करना, व्यभिचारिता, छेड़खानी करना इत्यादि सब दर्गण ग़लत सोहबत के कारण होते हैं। एक ग़लत सोहबत घर में कंटीले बबूल के बीज बोने के समान है। ये बीज हमारे घर के उपवन को जंगल और उजाड़ बना सकते हैं। बीज ऐसे बोए जाएँ जो हमें यश, गौरव और समृद्धि दे सकें।
याद कीजिए महाभारतकालीन कौरवों और पांडवों को। कौरव और पांडव एक ही घर में पैदा हुए, लेकिन कौरवों को शकुनि की सोहबत मिलती है और पांडवों को कृष्ण की मित्रता मिलती है। शकुनि की सोहबत दुर्योधन
और दुःशासन बनाती है और कृष्ण की सोहबत युधिष्ठिर और अर्जुन बनाती है। यदि दुर्योधन और दुःशासन को कृष्ण की सोहबत मिलती तो वे भी सुयोधन और सुशासन बनते और इतिहास कुछ और ही होता।
आपको वह कहानी याद होगी जिसमें दो तोते होते हैं। एक तोता डाकुओं की संगत में तो दूसरा संत की कुटिया में रहता है। जब वे दोनों ही किसी बहेलिये के द्वारा पकड़ लिये जाते हैं तो एक ही आदमी द्वारा खरीद लिये जाते हैं। वह दोनों तोतों को एक ही पिंजरे में रखता है। सुबह होने पर एक तोता बोलता है 'लूटो-लूटो-लूटो' और दूसरा कहता है-'स्वागतम्-स्वागतम् मंगल प्रभातम्।' खरीददार आश्चर्य में पड़ जाता है कि एक ही बहेलिए से मैंने दोनों तोते खरीदे हैं लेकिन दोनों में कितना अंतर है। वह तफ्तीश करता है तो पता चलता है कि एक तोता डाकुओं के खेमे से आया है और दूसरा संत की कुटिया से। ___सोहबत ही सुधारती है और सोहबत ही बिगाड़ती है। इसलिए बुजुर्गों का दायित्व है कि वे ध्यान रखें कि उनके बच्चों की मित्रता कैसे लोगों से है ? वे कहाँ-कहाँ आते-जाते हैं। बुजुर्ग स्वयं बच्चों के मित्र बनें और उन्हें अच्छे मित्र तलाशने में मदद करें। ऐसा मित्र न बनाएँ जो सरोवर के किनारे आया, दाना-पानी चुगा और उड़ गया। मित्र ऐसा बनाओ जो जल में मछली की तरह साथ रहे। मूर्ख और ग़लत व्यक्ति को मित्र बनाने की बजाय अकेले रहना
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