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निकल जाता है, तो इसका मतलब है कि बच्चों के प्रति पिता लापरवाह रहा। पापा ने बच्चे की पूरी ट्रेनिंग नहीं दी। केवल हो-हल्ला करने से बच्चे नहीं सुधरते। बच्चों के साथ खुद को बच्चा बनना पड़ता है। बच्चों के गुरु ही नहीं, मित्र बनकर भी उनकी कोंपलों को, उनकी कलियों को पुष्पित करना होता है।
बच्चे जहाज़ों की तरह होते हैं। जब तक वे किनारे पर रहते हैं, हमें उनकी निगरानी करनी पड़ती है पर जब वे समुद्र में उतर जाते हैं तो उन्हें खुद ही अपना ध्यान रखना होता है। बच्चों को अच्छी से अच्छी शिक्षा ज़रूर दिलाइए, पर उन्हें सदा इस बात की भी प्रेरणा देनी चाहिए कि वे अपने जीवन में ऐसा कुछ न करें जिससे उन्हें शर्मिंदा होना पड़े। भले ही आप अपने बच्चों के साथ रहें या अलग, पर जब भी बच्चों के पाँव लड़खड़ाएँ तो उन्हें सहारा देने के लिए हमें जरूर मौजूद रहना चाहिए। बच्चों के मन में यह विश्वास अवश्य रहे कि अब जब कभी हमारी आँखों में आँसू होंगे तो उन्हें पौंछने के लिए हमारे माता-पिता अवश्य हमारे पास होंगे।
मैं एक खास प्रेरक प्रसंग का जिक्र करूँगा, जिसमें अमेरिकी नौ सेना का प्रमुख एडमिरल जापानी सेना से टक्कर लेने के लिए अपने बेड़े को प्रशांत महासागर में भेजता है। बेड़े के रवाना होने के बाद वह अपने बेडरूम में बैठा हुआ आराम से सुस्ता रहा होता है कि तभी रिपोर्टरों ने उससे पूछा कि वह ऐसे समय में आराम कैसे कर पा रहा है जबकि उसके सैनिक तो भीषण समुद्री युद्ध में जूझ रहे हैं।
इस पर एडमिरल ने एक विजयी अंदाज़ में कहा कि मैंने अपनी क्षमता के अनुरूप अपने सैनिकों को बेहतरीन प्रशिक्षण दिया है। आधुनिकतम हथियार सौंपे हैं और हर हालात का सामना करने के लिए ज़रूरी हिदायत भी दी है। मैंने वह सब कुछ किया है जो मैं कर सकता था। मुझे अपने सैनिकों के लिए चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। चिंता उन्हें करनी पड़ती है जिनकी ट्रेनिंग और टीचिंग कमजोर होती हैं।
कुछ सीखने के लिए बड़े बुजुर्गों को यह घटना पर्याप्त है।
बड़े लोगों को देखना चाहिए कि उनका बच्चा किसी ग़लत सोहबत के कारण दुर्व्यसन या ग़लत आदतों का शिकार तो नहीं हो गया है। अपने बच्चों को गलत लोगों से बचाएँ। ग़लत लोग और ग़लत आदतें जीवन में नरक का 42
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