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________________ लेकर तुकाराम की पीठ पर दे मारा। गन्ने के दो टुकड़े हो गए। तुकाराम ने परिस्थिति को संभालते हुए कहा - तू कितनी साध्वी महिला है, सो मेरे बिना कहे एक के दो कर दिए। ले, एक तू चूस ले, एक मैं चूस लेता हूँ । इसको कहते हैं परिस्थिति पर विजय, ठण्डा मिजाज । अपने आपको जब भी गुस्सा आ जाए तो कोका कोला या थम्स अप का विज्ञापन याद कर लिया करो और खुद को ही भीतर से प्रेरित कर लिया करो - कूल-कूल मिस्टर ! कूलकूल। तीसरा मंत्र है : प्रगतिशील चिंतन के मालिक बनिए। पॉज़िटिव थिंकिंग का सिद्धांत हमें सिखाता है कि पुराण पंथी और दकियानुसी विचारों से चिपके मत रहिए । हम प्रगतिशील युग में जी रहे हैं तो अपनी प्रेक्टिकल लाइफ में अपनी मानसिकता को भी प्रगतिशील बनाइए । खान-पान, रहन-सहन और बोल - बरताव और पहनावे के प्रति यदि अपनी विचारधारा को पॉज़िटिव और प्रगतिशील बनाने में सफल होते हैं तो आप निश्चित तौर पर नई पीढ़ी और पुरानी पीढ़ी के बीच में आ रहे दुराव को कम करने में समर्थ होंगे। आप संतों की भाषा मत बोलिए, आप घर के अभिभावक अथवा घर के जिम्मेदार सदस्य हैं । आपकी पहली जिम्मेदारी यही है कि घर का माहौल प्रेम भरा और खुशहाल रहे । छोटीछोटी बातों को लेकर अगर आप टी.टीं करते रहेंगे तो घर वालों की आजादी छीन लेंगे और वे घर की बजाय स्वयं को कारागार में कैद समझने लगेंगे । हम जिस युग में पैदा हुए हैं हमें उस युग की फितरत को समझना होगा । सौ साल पुराने लबादे को आज ओढ़वाने की जिद करना आपकी दकियानूसी ही कलाएगी। मैं तो कहूँगा आप भी आज़ाद रहो और अपने बच्चों और बहुओं को भी आज़ादी का आनन्द लेने दो । आखिर लक्ष्मण-रेखाओं का एक सीमा तक ही पालन हो सकता है। अब न आप राम रहे हैं, न वह सीता । आप भी प्रगतिशील युग में जी रहे हैं तो अपने विचारों और जीवन-शैली को भी प्रगतिशील रखिए । एक घर में सभी लोग पुरानी परम्पराओं का निर्वाह करते हुए जी रहे थे । पोते ने लव मेरीज की । घर के कुछ सदस्यों ने विरोध दर्ज किया, पर दादाजी ने कहा, अगर मेरा पोता इस बहु से खुश है तो मैं इस नई बहु को स्वीकार करता हूँ । बहु स्वीकार तो हो गई, पर घर की पुरानी डाइनिंग टेबल, सोफे, बहु को रास न आए तो दादा ने अपने आपको पुरातत्व - प्रेमी बनाने की बजाए घर के सोफे ही 142 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003879
Book TitleGhar ko Kaise Swarg Banaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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