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सीखेंगे और प्रतियोगिता में ज़रूर भाग लेंगे। दो माह बाद जब वे पुनः मिले तो एक ने दूसरे के हालचाल पूछे। पहले ने कहा, 'मैंने बहुत अच्छी तैराकी सीख ली है। ढेर सारे तैराकी के गुर भी सीख लिए हैं। मुझे तो उम्मीद हो गई है कि मैं तैराकी में जीत भी सकता हूँ। तुम्हारा क्या चल रहा है ?' दूसरे ने कहा, 'मैंने तो अभी तक कुछ शुरू ही नहीं किया है।' 'क्यों?' 'क्योंकि डर लगता है कहीं डूब गया तो?'
जिसे डूबने का डर है वह कभी घर से बाहर नहीं निकल सकता। मन में आशंका रखकर चलने पर बच्चा कभी चलना ही नहीं सीख पाएगा। गिर-गिर कर ही व्यक्ति संभलता है। ठोकर लग-लग कर ही आदमी का निर्माण होता है। कोई घड़ा केवल ऊपर के प्यार के कारण नहीं बनता। एक तरफ प्यार होता है तो दूसरी तरफ थाप होती है, तब कोई घड़ा बनता है। अपने बच्चे को घर का पौधा मत बनाओ। उसे जंगल का वृक्ष बनाओ ताकि उसे पानी न भी मिले तब भी वह अपने बलबूते पर खड़ा रहे। माता-पिता अपने बच्चे को इतना मजबूत बनायें कि वह सर्दी, गर्मी के थपेड़े सहन कर सके। ग़रीबी में रहना पड़े तो रह सके यदि भाई दगा कर जाये तो उसे सहने का भी जिगर उसके पास हो। पता नहीं चलता, दुनिया में कब किसके साथ क्या हो जाए? बच्चों को आत्मनिर्भर बनाएँ, ताकि वे अपना काम ख़ुद कर सकें। अपने बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ काम करने की भी शिक्षा दें। ___ कभी हमारी भी आलोचनाएँ हुई थीं। लोग हमारे मुँह पर हमसे कहते थे कि हमने पंथ बदल लिया है, धर्म बदल लिया है, न जाने वे किस-किस तरह की आलोचनाएँ करते थे? लेकिन आज हमें छत्तीस कौम मानती हैं, छत्तीस कौम के लोग हमें सुनते हैं। क्या यह कोई मामूली बात है कि आज इस शहर में जनमानस को संबोधित करते हुए हमें पूरे पचास दिन हो गए हैं, फिर भी रोज दस हजार श्रोता उपस्थित रहते हैं। यह सब विराटता का परिणाम है, समन्वय का परिणाम है। हाथ में अगर तूलिकाएँ अच्छी हैं और रंग भी पूरे हैं तो फिर कैनवास भी बड़ा ही रखना होगा। लेकिन जो पहले ही चरण में घबराकर बैठ गया वह जीवन में कुछ नहीं कर सकता। कुछ बनना है तो आलोचनाओं को भी झेलना होगा। याद रखिए : दुनिया में किसी का अनुयायी होना सामान्य बात है। कोई
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