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रसोइयों के हाथ का बना हुआ । ऊपर से डालते हैं ज़बरदस्त घी - तेल - मिर्चमसाले । रढ़ा हुआ दूध, पनीर, काजू-किशमिश, न जाने सब्जियों में आजकल क्या-क्या डालना शुरू कर चुके हैं ? अरे भाई, न तो खिलाने वाला राजामहाराजा है और न ही खाने वाला । आजकल वैसे भी लोग मेहनती कम हैं। सब कारों में घुमने वाले हैं। अब ऐसा राजशाही भोजन करोगे तो शरीर की आंतरिक व्यवस्था चरमराएगी नहीं तो और क्या होगा। इन रसोइयों के हाथ का भोजन अगर आदमी लगातार सात दिन कर ले तो कैलोरी इतनी बढ़ जाएगी कि उसका असर हार्ट पर कब पड़ जाए कुछ कहा नहीं जा सकता । भाई, डॉक्टर सादा भोजन करने की सलाह दे उससे पहले ही आप अपने भोजन को सादा कर लीजिए। जो आदमी नमक कम खाता है, मिठाई से परहेज़ रखता है, तली हुई चीज़ों का भूल कर भी उपयोग नहीं करता, अपना दावा है कि वह आदमी भोजन के कारण कभी भी बीमार नहीं पड़ेगा। भोजन भी ऐसे करो कि जैसे भजन करते हो । ख़ूब धीरज से, शांति से, पवित्रता से । भोजन जितना सात्विक और सुपाच्य होगा, आप उतने ही स्वस्थ और तदुरुस्त रहेंगे ।
भोजन सदा सात्विक करें । थाली में उतना ही खाना लें जितना खा सकें। जूठा छोड़ना अन्न देवता का अपमान है। यदि खाना बनाने में कोई कमी रह जाए तो उसमें मीन-मेख निकालने की बजाय या तो शांतिपूर्वक अपना सहज भोजन ले लीजिए या फिर नमक कम है तो नमक डाल लीजिए और यदि नमक ज़्यादा है तो सब्जी में एक घूँट पानी या दही मिला लीजिए। भोजन करते वक़्त न तो अपना 'भेजा' ख़राब कीजिए और न ही अपनी घरवाली का । सौदा तो प्यार और शांति का ही अच्छा होता है । अच्छा होगा मौनपूर्वक भोजन करें। खाना खाते समय न टी.वी. देखें और न ही अखबार पढ़ें । खाना खाते समय केवल खाना खाएं, दिमाग़ में दूसरा कचरा ग्रहण न करें। एक काम, एक मन । जब भी कोई काम करें, पूरी तन्मयता और एकाग्रता से करें ।
हमारे देशवासियों की यह बुरी आदत पड़ गई है कि हम सुबह की चाय पीते वक़्त अख़बार पढ़ते हैं और शाम को खाना खाते वक़्त टी.वी. देखते हैं। अब अख़बारों में अच्छी चीज़ें तो आती नहीं हैं। वही राजनीति, वही झूठ
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