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________________ दूर करने के लिए सूर्य या ऊष्णताप्रधान तत्त्वों का उपयोग कर सकते हैं । कई दफ़ा ऐसे भी प्रयोग देखने को मिले हैं कि कमर, पीठ या गर्दन में दर्द होने जाने पर, चनक़ पड़ जाने पर या लचक पड़ जाने पर बिस्तर को तेज धूप में रख दिया जाता है और फिर उस पर आधे घंटा लेट जाने की सलाह दी जाती है । धूप में बिस्तर की रुई गर्म हो जाती है और उस पर सोने से शरीर की सिकाई हो जाती है। आपने देखा है कि मैग्नीफाइंग ग्लास द्वारा जब सूर्य की रोशनी को फोकस कर काग़ज़ पर डाला जाता है तो वह काग़ज़ जल उठता है । हमारी देह तो उसे अपने संपूर्ण रूप में ग्रहण करने में सक्षम हैं। एक गुजराती भाई हैं। उनके शरीर का तो सूर्य की किरणों के साथ ऐसा तालमेल है कि वे मात्र सूर्य की आधे घंटा आतापना लेकर चौबीस घंटे निराहार रहते हैं और ऐसा वे पूरे सालभर कर सकते हैं । वे जब मुझसे मिले तो मुझे बताया गया कि उन्होंने पिछले दो साल से सूर्य रश्मियों के अलावा अन्य किसी भी प्रकार के अन्नजल का उपयोग नहीं किया है। हिमालय में भी संत लोग नियमित सूर्य - आतापना लिया करते हैं । एक संत हुए हैं : स्वामी विशुद्धानंद जी । वे अपनी कुटिया के बाहर बैठे हुए थे । तभी देखा कि एक घायल चिड़िया जमीन पर गिरी है। उन्होंने उस चिड़िया को अपने पास मंगवाया । उनके पास तरह-तरह के मैग्नीफाइंग ग्लास थे। उन्होंने उन विभिन्न ग्लासों से चिड़िया के विभिन्न अंगों पर सूर्य की रोशनी को फोकस किया। थोड़ी देर में वह चिड़िया फड़फड़ाने लगी और जब उसकी चोंच में दो बूंद पानी डाला तो चिड़िया में जान आ गई और वह फर्र से उड़ गई । आपने विदेशियों को देखा होगा। वे हमारे यहाँ आते हैं और गोवा के समुद्रतट पर धूप में पड़े रहते हैं, 'सन बाथ' लेते हैं । वे प्रतिदिन चार-छः घंटे धूप में बिताते हैं । इससे उनके त्वचा संबंधी रोग ठीक हो जाते हैं। पृथ्वी और अग्नि तत्त्व के साहचर्य से व्यक्ति का लकवा रोग भी ठीक किया जा सकता है । राजस्थान के रेगिस्तान में जो बालू रेत पाई जाती है उसके आठ-दस बोरे मंगवा लीजिए। उसे धूप में तीन-चार घंटे रखिए, फिर लकवाग्रस्त व्यक्ति को 109 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003879
Book TitleGhar ko Kaise Swarg Banaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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