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________________ अगर आपको लगता है कि आपके घुटने दुखते हैं या कमर दर्द करती है तो जल तत्त्व की शरण में जाइए। एक बाल्टी पानी गरम कीजिए, एक बाल्टी ठंडा पानी भी रखिए और जो भाग दर्द करता है उसे तीन मिनट पहले गरम पानी में रखिए और फिर तीन मिनट ठंडे पानी में रखिए। पाँच बार इस क्रिया को दोहराइए। गरम-ठंडे पानी के साहचर्य से नसों में रुका हुआ खून फिर ठीक से चलने लगेगा और शरीर का दर्द शनैः शनैः ठीक हो जाएगा। हम स्नान क्यों करते हैं ? जल तत्त्व के सम्पर्क में रहने के लिए। प्रतिदिन साबुन भी न लगाएं। सप्ताह में एक या दो बार ही साबुन का प्रयोग करें। गीले तौलिये से शरीर को थोड़ा रगड़ते हुए पौंछिए। एक तो इससे रक्तप्रवाह अच्छी तरह होगा। दूसरा जो रोम-छिद्र धूल और पसीने से अवरुद्ध हो गए हैं, वे खुल जाएँगे। पसीना तो निकलना ही चाहिए तभी तो दूषित तत्त्व बाहर निकलेंगे। स्नान करने से ताज़गी आती है और शरीर की उत्तेजनाएं, विकार तथा दोष अपने आप शांत हो जाते हैं। सरोवर में स्नान करने के बजाय, बहते पानी में स्नान करना अधिक लाभदायक है। पानी के वेग से विद्युत उत्पन्न की जा सकती है, तो ऐसा वेगवान पानी जब हमारे शरीर से टकराता है तो ऊर्जा उत्पन्न होती है। यह ऊर्जा हमारे शरीर को ऊर्जस्वित करती है। दस बाल्टी पानी से स्नान करने की अपेक्षा नदी में एक बार डुबकी लगाना ज़्यादा लाभदायक है। शरीर के शैल्स को चार्ज करने के लिए जल-तत्त्व आवश्यक है। हमारे शरीर में तीसरा तत्त्व है : अग्नि। अग्नि-तत्त्व को अपने शरीर के साथ जोड़ने का सबसे बेहतरीन माध्यम सूर्य है। हममें से प्रत्येक को प्रभातकालीन सूर्य के समक्ष कम-से-कम पन्द्रह मिनट तक अवश्य ही बैठना चाहिए। आपने देखा है कि हमारे देश में सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है, क्यों? इसीलिए कि इस बहाने ही सही, कम-से-कम तीन मिनट तो सूर्य के सामने खड़े रह सकेंगे। सौर-ऊर्जा से तो आज चूल्हे जल रहे हैं, गाड़ियाँ चल रही हैं, पवनचक्कियाँ अपना काम कर रही हैं। यानी सूर्य अग्नि का पिंड है। अग्नि ही खाना पकाती है, इंजन चलाती है। शरीर में ग्रहण किया गया भोजन भी जठराग्नि में ही पचता है। आप भी शरीर की जगड़न और शरीर के दोषों को 108 | Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003879
Book TitleGhar ko Kaise Swarg Banaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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