SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 102
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ के शुरुआती पच्चीस वर्षों को शिक्षा-दीक्षा के लिए लगाया, वैसे ही अगले पच्चीस-तीस वर्ष घर-गृहस्थी और व्यापार में लगाइए, पर जिस दिन 60 वर्ष की उम्र हो जाए, घर-गृहस्थी से मोह - ममता कम करने लग जाएँ और तब संसार में भी संतों की तरह जिएँ । न कोई चाह, न कोई चिंता । बस मस्त रहें । सबसे प्रेम करें, सबको प्रेम बाँटें । बस, यही आपका स्वभाव बन जाए। साठ की उम्र के बाद भी यदि घर-गृहस्थी और धंधे में उलझे रहेंगे तो जीवन की ख़ुशी छिन जाएगी और आपका बुढ़ापा अशांतिमय हो जाएगा। आपकी ज़िंदगी केवल घसीटाराम होकर रह जाएगी । अरे भाई, जीवन तो प्रभु का प्रसाद है। इस प्रसाद का प्रसाद - भाव से भी कुछ आनंद लो। आख़िर कब तक हम चक्की में पिसते रहेंगे। थोड़ी ख़ुद की भी सुध लीजिए। ख़ुद का भी कल्याण कीजिए । बचपन ज्ञानार्जन के लिए सौंपिए, जवानी धनार्जन के लिए और बुढ़ापा पुण्यार्जन के लिए। आप दो क़दम प्रभु की ओर बढ़ाते जाइए, प्रभु चार क़दम आपके क़रीब आते जाएँगे । मैं एक देव- - पुरुष का उल्लेख करूँगा । नाम है : धर्मपाल जी जैन। हाई लेवल के एडवोकेट रहे हैं। पिछले करीब 15 वर्षों से वानप्रस्थ जीवन जीते हैं, लगभग 50 वर्ष की उम्र में ही यह संकल्प ले लिया था कि वे जिस दिन 60 वर्ष के होंगे, प्रेक्टिस छोड़ देंगे । बस, 61 वें वर्ष में प्रवेश करते ही वे मुक्त हो गए। पहले वकालात की प्रक्टिस छोड़ी, धीरे-धीरे सत्संग और स्वाध्याय का शौक लगा, संतों के सान्निध्य में जाने लग गए। आज वे संसार में रहते हुए भी संत हैं । शांति, विनम्रता और आनंद की प्रतिमूर्ति । मुझे तो वे देवतुल्य ही नज़र आते हैं। ऐसा जीना भी धन्य है । बचपन दिया ज्ञान के लिए, यौवन दिया गृहस्थी और धन के लिए और अब बुढ़ापा समर्पित कर रहें स्वयं के मोक्ष के लिए। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष - चारों पुरुषार्थ पूरे हुए। 50-60 वर्ष की उम्र तक अर्थ और काम- पुरुषार्थ ठीक है। 60 के बाद तो धर्म और मोक्षपुरुषार्थ ही सबका ध्येय हो । आज वे दो माह घर पर रहते हैं, दो माह हरिद्वार रहते हैं, दो माह हमारे पास संबोधि-धाम में सत्संग-साधना करते हैं। पूरी तरह आत्मसमर्थ, आत्मनिर्भर । बुढ़ापे की व्यवस्था के लिए धन की पूरी व्यवस्था कर रखी है। पर 31 मार्च तक जितना बैंक - ब्याज आया, उसे आना - पाई सहित ख़ुद पर और परोपकार पर लगा देते हैं । Jain Education International For Personal & Private Use Only | 101 www.jainelibrary.org
SR No.003879
Book TitleGhar ko Kaise Swarg Banaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy