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वह अविनश्वर जब कभी जिसे मिला है, सहज ही मिला है । यह कितनी मधुर बात है कि जिस कृष्ण की उपासना में सुरेश, गणेश और महेश तत्पर हैं, वह कितनी सहजता से ग्वाल-बालाओं के साथ क्रीड़ारत हो जाता है । नीतिकारों का तो यही अनुभव रहा है - 'बिन मांगे मोती मिले, मांगे मिले न भीख।' अथवा इसे यों कह दें- 'अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम । दास मलूका कह गए, सबके दाता राम ।।' संत कबीर का यह पद इस संदर्भ में सहज ही बड़ा संप्रेरक है - 'सहज मिले सो दूध सम, मांगा मिले सो पानी । कह कबीर वह रक्त सम, जामे खींचा-तानी । ।'
आप अपनी नौका को प्रभु पर छोड़कर तो देखें । प्रभु स्वयं हमें उस पार पहुंचाने को आतुर हैं। हम जीवन में आने वाले संकटों को भी प्रकृति की व्यवस्था का ही एक चरण मानें। हम बड़े-से-बड़े संकट को भी बड़ी सहजता से लें। हम स्वयं में एक महान् चमत्कार देखेंगे कि प्रकृति ने हममें एक गहरा आत्म-सामर्थ्य आपूरित किया है। हम बड़े सहज, शांत और निर्भय-भाव से बड़े-से-बड़े संकट का सामना कर जाएंगे। काश, यदि लक्ष्मण अपने क्रोध को अपने काबू में रखते और हर प्रतिकूलता के बावजूद सहज बने रहते, तो शायद लक्ष्मण की आहुतियां, उनका त्याग और बलिदान श्रीराम से कहीं अधिक खाना जाता। गंभीर - से- गंभीर और भयंकर से भयंकर परिस्थिति में भी अपने आपको सहज - सौम्य बनाए रखना मर्यादा - पुरुषोत्तम श्रीराम की सबसे बड़ी खासियत रही ।
ओह, हम अपने जीवन के साथ सहजता से पेश क्यों नहीं आते ! हम सदा निश्चित रहें। इस बात को सदा याद रखें कि जो हमें जीवन देता है, वह जीवन के साथ उसकी व्यवस्थाएं भी देता है । मनुष्य मां की कोख से बाद में पैदा होता है, मां की छाती दूध से पहले भर जाती है । हम प्रकृति की व्यवस्थाओं में विश्वास करके तो देखें, हमारी व्यवस्थाएं स्वतः न होने लगें, तो यह भी आजमाकर देखना । प्रकृति की व्यवस्थाएं बड़ी सटीक होती हैं । जीवन में सारे द्वार एक साथ बंद नहीं होते । यदि एक बंद होता भी है, तो विश्वास रखें, दूसरा खुल भी जाता है । हमारा यह विश्वास और अंतर्दृष्टि ही हमें अपने जीवन में सहजता और शांति का आचमन करा पाएगी ।
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