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न उलझें प्रतिक्रियाओं में
मन की शांति का स्वामी होने के लिए सहजता से जुड़ा हुआ जो दूसरा पहलू है, वह है- प्रतिक्रियाओं से परहेज रखना । क्रियाओं का होना स्वाभाविक है, किंतु प्रतिक्रियाओं का होना आत्मनियंत्रण का अभाव है। जो अपने आप पर काबू नहीं रख सकते, वही बात-बेबात में व्यर्थ की प्रतिक्रियाएं करते रहते हैं। जो अपने जीवन में इस बात का बोध बनाए रखता है कि मैं क्रिया-प्रतिक्रिया के भंवर-जाल में नहीं उलझुंगा, वही अपने जीवन में शांति और आनंद को बरकरार रख पाएगा। प्रतिक्रिया ही तो आज हर परिवार और समाज की समस्या है। प्रतिक्रिया ने हमेशा परिवार और समाज को बांटा है, हिंसा और तनाव को प्रोत्साहन दिया है, मानसिक और व्यावहारिक संतुलन को क्षति पहुंचाई है। जब भी प्रतिक्रियाएं करेंगे, हम स्वयं को क्रोधित और अनियंत्रित पाएंगे; हमारा रक्तचाप चढ़ जाएगा। सावधान, कहीं ऐसा न हो कि हमें ब्रेन हेमरेज हो जाए ।
क्या कभी आपने घर-परिवार पर ध्यान दिया कि घर में इतना तनाव और खिंचाव क्यों है? भाई-भाई में असंतुलन क्यों है ? पिता और पुत्र के बीच अलगाव के क्या कारण हैं? सीधा-सा जवाब है - बातों को न पचा पाना, छोटी-छोटी बात पर अनियंत्रित और प्रतिक्रियाशील हो उठना । तुम समाज की भी स्थिति देख लो, प्रतिक्रियाओं का पारा कितना चढ़ा हुआ है । कोई इधर खींचता है, कोई उधर; कोई इधर की हांकता है, कोई उधर की । स्वस्थ शांति का सुकून कहां है ! सब अपनी-अपनी संकीर्णता और दायरे में उलझे हैं। उदार और विराट दृष्टि है किसमें ! आदमी की शांति को खंडित करने के लिए एक छोटा-सा निमित्त भी काफी हो जाता है । किसी सरोवर को हिलाने के लिए लंबे-चौड़े तूफान की ज़रूरत नहीं होती, मिट्टी की एक ठीकरी ही पर्याप्त होती है ।
कौन क्या कहता है, इसकी ओर ध्यान देने की बजाय हम इस पर गौर फरमाएं कि हमें क्या करना है । किसी के द्वारा हमें गलत कहे जाने पर हम गलत थोड़े ही हुए। जो आज हमें गलत कह रहा है, वक्त बदलते कितनी देर लगती है, वही हमें अच्छा भी कहने लग जाएगा। किसी के द्वारा हमें
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