SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सकते हैं। कुछ संस्कार ऐसे होते हैं, जो माता-पिता द्वारा मिलते हैं और कुछ संस्कार ऐसे होते हैं, जो संगत-सोहबत और शिक्षा से मिल जाया करते हैं। जीवन में पलने वाली बुरी आदतों के पीछे अधिकांशतया हमारी संगति और मित्र-मंडली का ही हाथ होता है। हम अच्छी प्रवृत्तियां तो स्वीकार नहीं कर पाते, बुरी आदतों के जल्दी शिकार हो जाते हैं। स्वाभाविक बात यह है कि जब कोई कुत्ता दरवाजे को खुला देख घर के आंगन की ओर चला आता है, तो घर के सदस्य उसे रोटी देने की बजाय भगाने और लाठी से पीटने के लिए उत्सुक हो जाते हैं। यह प्रवृत्ति पूर्व जन्म से आई संस्कार-धारा की परिणति है। बच्चे पिता के द्वारा पी गई सिगरेट का पीछे बचा अधजला टुकड़ा पीने की कोशिश करते हैं। यह प्रवृत्ति हमारे भीतर पिता के संस्कारों को आरोपित करती है। बच्चा हमेशा पिता के पदचिह्नों का अनुसरण करना चाहता है। फिर चाहे वे पदचिह्न अच्छे हों या बुरे। जिनके साथ हम रहेंगे, उनका असर तो आएगा ही। महात्मा गांधी कहा करते थे कि उन्होंने बचपन में अपने ही नौकरों की अधजली, अधफूंकी बीड़ी-सिगरेट के टुकड़ों को पीया था, यानी नौकरों ने सिगरेट का संस्कार दिया। यह तो हुआ वातावरण का प्रभाव। कुछ संस्कार ऐसे भी होते हैं, जिनका संबंध पूर्व जन्म से जुड़ा होता है। महात्मा बुद्ध और महावीर के बारे में जन्म से ही यह भविष्यवाणी कर दी गई थी कि वे अपने यौवनकाल में संन्यास ग्रहण कर लेंगे। उनके महाराजा माता-पिता ने उन्हें ऐसा न करने के लिए पूरा प्रबंध किया। भोग-उपभोग और शृंगार का हर निमित्त उपलब्ध किया गया था, लेकिन इसके बावजूद पूर्व जन्म के संस्कार हावी और प्रभावी रहे। वे संत और अरिहंत हुए। संस्कार चाहे बेहतर हों या बदतर, इस जन्म के हों या पूर्व जन्म के, जीवन में व्यक्त हुए बिना नहीं रहते। यह भी संभव है कि व्यक्ति के माता-पिता में से उस पर किसी एक का ही असर हो। जरूरी नहीं है पिता यदि व्यसनी और कामुक प्रवृत्ति के रहे हों, तो उनकी संतान भी वैसी ही हो। मैंने पाया है कि एक पिता गलत प्रवृत्ति 72 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003877
Book TitleJiye to Aise Jiye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy