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स्वीकार करें और अपनी पूरी लगन के साथ उसका बाकायदा उपयोग करें। सुस्त और प्रमादी लोग समय के अवसरों का उपयोग नहीं कर पाते। जो अपने जीवन में छोटे अवसरों को सफलता का जामा नहीं पहना सकता, वह किसी बड़े अवसर को पाने का उत्तराधिकारी नहीं होता। आलसी लोगों का नाम समय के शिलालेखों में अपाहिजों के रूप में लिखा जाता है। समय के साथ मैत्री साधने वालों को चाहिए कि वे समय के पाबंद रहें। जिसके जीवन में समय का अनुशासन नहीं है, वह किसी भी तरह का शासन करने के योग्य होता ही नहीं है। हम भारतवासियों की सबसे बड़ी कमी यह है कि हम समय के प्रति सबसे ज्यादा सुस्त और लापरवाह होते हैं। हम पश्चिम का आंख मूंदकर अनुकरण कर लेते हैं, पर वहां की समयबद्धता को आंशिक रूप में भी स्वीकार नहीं कर पाते। हमारे देश की ऊंची संस्कृति का सारे विश्व में निर्यात होना चाहिए, लेकिन वहां की ‘समयबद्धता' को भारत में आयातित भी किया जाना चाहिए। भारत यदि समयबद्धता के सिद्धांत को स्वीकार कर ले, तो भारत का मालिक भगवान को बनाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। समयबद्धता और प्रामाणिकता-केवल इन दो सूत्रों के आधार पर भारत का भाग्य बदला जा सकता है, इसका भविष्य स्वर्णिम बनाया जा सकता है। यह कितनी बड़ी विडंबना है कि हम समय से नहीं चलते। रात में सोने की बात को लिया जाए, तो देर से सोते हैं और सुबह उठने की बात लें, तो समय गुजर जाने के बाद उठते हैं। लेट-लतीफी का प्रचलन ऐसा चल पड़ा है कि व्यक्ति अपने दफ्तर में भी देर से पहंचता है, कोई मीटिंग हो, तो उसमें भी समय की पाबंदी नहीं होती, समारोह चाहे अच्छे से अच्छा क्यों न हो, समय पर शुरू नहीं होता। शादी में जाओ, तो बारात देर, स्टेशन जाओ, तो ट्रेन लेट। और तो और, हवाई जहाज भी लेट। यानी समय की कोई सही व्यवस्था ही नहीं। ध्यान रखें, जहां समय की पालना नहीं, उसके जीवन में कोई व्यवस्था नहीं होती। भला जो समय को नहीं निभा सकता, वह अपने धर्म और वचन को क्या निभाएगा!
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