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समय का स्वरूप परितर्वनशील है। वह किसी का रंग भी बदल देता है और किसी के बदलते रंग को देखकर अपना रंग भी बदल लेता है। धरती के इतिहास में अब तक जितने विजय-पराजय के युद्ध हुए; उत्थान हुआ कि पतन, समय सबका द्रष्टा रहा और सबका सूत्रधार भी। धरती पर अब तक जो कुछ हुआ, वह सब समय का खेल था। जिसने भी समय से टक्कर लेनी चाही, समय ने उसे धूल-धूसरित किया, जिसने समय से मैत्री साधी, समय ने उसे सदा संभाला। समय सब कुछ बदल देता है, पर समय स्वयं नहीं बदलता है। वह जीने-मरने की एक मिनट की भी छूट नहीं दे सकता। जिसे जीवन देना होता है, वह हर हाल में उसका संरक्षण करता है, 'जाको राखे साइयां, मार सके न कोय' । जिसे वह उठाना चाहता है, उसे वह कब-किस रूप में उठा लेगा, पता नहीं। आदमी के सौ प्रबंध धरे रह जाते हैं। काल उसका 'काल' बनकर उसे उठा ही ले जाता है। समय ! मान गए मृत्यु भी तेरा ही एक रूप है।
साधे, समय संग मैत्री
लोग हाथ पर घड़ी लगाते हैं, लेकिन इसके बावजूद समय के स्वरूप और मूल्य को ध्यान नहीं दे पाते। कुछ लोग तो ऐसे नाकामे बैठे रहते हैं कि उनके लिए समय काटना मुश्किल हो जाता है। किसी घर बैठे बूढ़े से पूछो कि क्या कर रहे हो? तो जवाब मिलेगा-समय काट रहे हैं। भला समय को कोई काटा जाता है! अगर काटेगा, तो समय ही काटेगा। समय ही हमें काटता है, हम समय को नहीं। समय के प्रति सकारात्मक और रचनात्मक न होने के कारण ही समय ने आपको बूढ़ा बना दिया है। आप यदि कुछ कर गुजरने की अंतर्निष्ठा से भर उठें, तो आप ताज्जुब करोगे कि स्वयं समय ने भी आपका सहायक बनना शुरू कर दिया है। समय का न अच्छा रूप होता है, न बुरा। आप संकल्प, समर्पण, निष्ठा और दृढ़ इच्छा-शक्ति के साथ समय का उपयोग करें, समय आपके द्वार पर सौभाग्य के फूल न बिखेर दे, तो मुझसे कहना। हम समय से लड़ें नहीं। धारा के उल्टे आखिर कितनी देर तैर सकेंगे! समय के साथ एकता और मैत्री साधे।
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