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लगाओगे, तो चंदन की सुवास से स्वयं को और सबको आह्लादित करोगे । हमारे आचार-विचार, बोल-बरताव, आहार-विहार और आदत-संस्कार भी वैसे ही बन जाते हैं, जिस तरह की आदत वालों के साथ हम उठते-बैठते हैं । आखिर, कीचड़ में पांव रखकर गुलाब की सुगंध नहीं पाई जा सकती।
' जैसा खाए अन्न, वैसा रहे मन' इस चिरपरिचित उक्ति पर ध्यान दें, तो बुद्धिमान लोगों को चाहिए कि वे भोजन की सात्विकता पर भी सजगता बरतें। शिक्षा वह हो, जो हमें जीवन-दृष्टि दे, जीने की कला सिखाए । व्यवसाय भी ऐसा हो, जो शुद्ध आजीविका प्रदान करे ।
ऐसे जीएं जीवन अपना
बेहतर होगा कि हम सुबह सूर्योदय से पहले जागें । स्वयं में ऊर्जा, उत्साह और आत्मविश्वास का संचार करें। माता-पिता को प्रणाम करें। शौच-क्रिया से निवृत्त हो, स्वच्छ और खुली हवा में टहलने के लिए जाएं। टहलना और व्यायाम करना शरीर के लिए वैसे ही लाभप्रद है, जैसे बढ़ई के द्वारा औजार में धार करना । टहलते समय दीर्घ श्वास लें। नाखून न बढ़ाएं। प्रतिदिन स्नान करें। सप्ताह में दो बार शरीर पर तेल की मसाज करें। घर में कुछ गले लगाएं, व्यर्थ की चिंता न पालें । मन की शांति और निर्मलता के लिए ध्यान अवश्य करें और सदा ईश्वर तथा प्रकृति के लिए धन्यवाद से भरे रहें । स्वाध्याय हमारी बुद्धि को प्रखर और सक्रिय बनाए रखने में सहयोग करेगा ।
मौन एवं शांतिपूर्वक भोजन करें। जूठन न छोड़ें। शुद्ध भोजन करें । बाजारू खाद्य पदार्थों से परहेज रखें। हाथ धोने के लिए गिलास भर पानी और पोंछने के लिए तौलिए को भोजन के समय साथ लेकर बैठें। ध्यान रखें कि दिन में अनावश्यक सोने की आदत न डालें ।
घर से बाहर जाते समय बड़ों का अभिवादन और बच्चों को प्यार देकर जाएं। अपनी दिनचर्या और आजीविका को बड़े उत्साह से सम्पादित करें । जीवन के हर कार्य और कर्त्तव्य के लिए सन्नद्ध रहें, ऐसी बातों और लोगों
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