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घर-परिवार का सीधा असर माता-पिता और घर-परिवार के सदस्यों के बोल-बरताव का बच्चे पर सीधा असर पड़ता है। अपनी संतान को श्रेष्ठ संस्कारों का स्वामी बनाने के लिए हमें स्वयं को पहले उन्हें आत्मसात करना होगा। हमें घर का वातावरण ही ऐसा रखना चाहिए कि घर के सभी लोग अनायास ही सादगी, स्वच्छता और शालीनता का आचरण करते रहें। एक संस्कारित बालक का निर्माण सौ विद्यालयों को बनाने के समान है। बालक का जीवन तो उस गमले के समान है, जिसमें जैसे विचार, व्यवहार
और संस्कार के बीज बो दिए जाएंगे, पौधा और फूल-फल वैसे ही विकसित होंगे। माता-पिता को अपनी संतान के प्रति एक जीवन-माली और जीवन-गुरु का दायित्व वहन करना चाहिए। जीवन को हम उस बर्तन की तरह जानें, जिस पर जो चिह्न उकेर दिया जाता है, वह सदा बना हुआ रहता है। फिर क्यों न हम जीवन में वे मधुर संस्कार और आदर्श स्वीकार करें, जिनका प्रभाव चरित्र में जीवन-भर बना रहे।
संदर्भ : शिक्षा, संगति और संस्कार का
हमारे आचार-विचार और जीवन-शैली को प्रभावित करने वाला एक और जो सबसे बड़ा घटक है, वह है मित्र-मंडली। यदि किसी के बारे में यह जानना हो कि वह कैसा व्यक्ति है, तो मात्र इतना पता लगा लें कि वह किस स्तर के लोगों के बीच उठता-बैठता है। संगत स्वतः रंगत दिखा देता है। हमें मित्र बनाते वक्त उतनी ही सतर्कता बरतनी चाहिए, जितनी वर या वध की तलाश के लिए श्रम और सावधानी बरतनी पड़ती है। संगति का असर तो आखिर आएगा ही। गोरे के पास काला बैठेगा, तो भले ही उसका रूप न चढ़े, पर उसको अक्ल तो आएगी ही आएगी। काजल की कोठरी में जाएंगे, तो दामन में दाग तो लगेगा ही। सीधी-सी बात है कि हींग की पोटली जेब में रखोगे, तो हींग की ही गंध आएगी, वहीं चंदन का तिलक
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