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________________ हर कृत्य ईश्वर की पूजा व्यक्ति को चाहिए कि अपने किसी भी कृत्य को छोटा न समझे। वह अपने हर कृत्य को अपने लिए ईश्वर की पूजा माने। आनंद-भाव से कार्य करेंगे, तो वह कार्य आपके लिए मुक्ति का प्रथम द्वार बन जाएगा और रोते-झींकते बोझिल मन से कार्य करेंगे, तो वह कार्य ही जीवन के लिए बंधन बन जाएगा। अतः हम अपने कार्यों को इस तरह से संपादित करें कि हमारा हर कर्म परमात्मा की प्रार्थना और आराधना हो जाए, हमारे कृत्य हमारा कर्मयोग बन जाएं। कार्य चाहे व्यवसाय का हो या घर-परिवार का, समाज का हो या राष्ट्र का-हम अपने हर कृत्य को अपनी ओर से प्रभु को समर्पित किया जाने वाला पुष्प ही समझें और उसी रूप में उसे संपादित करें। सांझ को जब घर लौटें, तो अपने घर के छोटे-बड़े हर सदस्य से प्रेमपूर्वक मिलें। संभव है कि हम दिन भर के कार्यकलापों से थके हुए घर लौटे हों, पर निश्चय ही घर में पीछे रहने वाले सदस्य हमारे लिए प्रतिपल चिंतित रहे हैं, हमारा मंगल चाहते रहे हैं और हमारी कुशल वापसी की प्रार्थना करते रहे हैं। हम अपनी बोझिलता का गुस्सा कभी घर के सदस्यों पर न निकालें, क्योंकि वे हमारे हितैषी, हमारे सुख-दुःख के सहभागी और हमारे लिए प्रतीक्षारत रहे हैं। परिवार के प्रति अपने दायित्वों को निभाकर हम धन्य बनेंगे और परिवार का प्रेम पाकर भी। ध्यान रखें, परिवार को हमारी सख्त ज़रूरत है। हम परिवार में परिवार के लिए ऐसे जीएं कि स्वयं को परमात्मा की कृति कहला सकें। संध्याकाल का जब भोजन ग्रहण करें, तो इतनी सजगता अवश्य रखें कि आपके सोने में और भोजन में इतना अंतराल अवश्य हो कि भोजन को पचने में दिक्कत न आए। अगर रात को काफी देर से सोते हैं, तो इस आदत को भी सुधारें। समय पर सोएं और समय पर जागें; यथासमय ही भोजन करें और यथासमय ही अपने कार्यों को संपन्न करें। रात को सोएं, तो ईश्वर को अपना जीवन समर्पित कर दें और सुबह उठें, तो इस नए दिन की सौगात के लिए ईश्वर के प्रति कृतज्ञता से भर उठें। आप सचमुच प्रमुदित रहेंगे, हमारा जीवन हमारे लिए वरदान सिद्ध होगा, हम अपने लिए और दुनिया के लिए कुछ अच्छा कर गुजर सकेंगे। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003877
Book TitleJiye to Aise Jiye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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