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परिणामों का पूर्वबोध रहे
जीवन के प्रति सजग न रहने के कारण ही अथवा अपने कृत्य के परिणामों का पूर्वबोध न होने की वजह से ही व्यक्ति गलती करता है । वह न केवल गलती करता है, वरन् उसी गलती को दोहराता है, गलती का पिष्ट-पेषण होता रहता है । व्यक्ति हर कार्य को करने से पहले या हर वाक्य को बोलने से पहले किंचित् यह बोध या सजगता धारण कर ले कि मैं जो कर या कह रहा हूं, वह किसी रूप में अमंगलकारी या किसी के लिए अनिष्टकारी तो नहीं है? हमारा हर कृत्य और वाक्य स्पष्ट, सरल और बोधगम्य होना चाहिए, किसी व्यंग्य या रहस्यमय पहेली की तरह नहीं । व्यक्ति को ऋजु और निर्मल होना चाहिए, अंधेरी गलियों जैसा नहीं ।
अच्छाई वापसी का रास्ता ढूंढ़ लेती है । हमारा अच्छा और भला किया कभी व्यर्थ नहीं जाने वाला । चाहे हमारे विचार हों या व्यवहार, काम हो या निर्माण, वे आज नहीं तो कल, तेजी से लौट आने वाले हैं। स्वयं के स्वस्थ, सफल और मधुर जीवन के लिए हमारे हर कार्य की शुरुआत स्वस्थ हो, सही हो, स्वस्तिकर हो । इसी तरह उसका मध्य और अंतिम परिणाम भी उसी के अनुरूप हो। हमारी वाणी सही हो; शरीर के द्वारा होने वाला कर्म और आजीविका सम्यक् हो; हमारा हर अभ्यास और व्यापार सही हो । जीवन और जगत् के प्रति हमारा हर भाव और दृष्टिकोण शुद्ध और स्वार्थरहित हो; हम अपने हर कर्म को करने से पहले विवेकपूर्वक यह जांच लें कि इससे मेरा अथवा किसी अन्य का बुरा तो नहीं हो रहा है। हम वही कार्य संपादित करें, जिससे स्वयं का भी भला हो और औरों का भी ; खुद सुख से जीएं और औरों को सुख से जीने का अधिकार दें, इसी से स्वयं का और सबके जीवन का मांगल्य सधता है ।
कर्म तेरे अच्छे हैं, तो किस्मत तेरी दासी । नीयत तेरी साफ है, तो घर में मथुरा-काशी ।।
नेक कर्म और साफ नीयत - जीवन का मांगल्य साधने के ये दो आधार-सूत्र हैं। सबके श्रेय और मांगल्य में स्वयं का कल्याण स्वतः समाहित है।
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