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________________ का जीवन इतना विचित्र है कि उसमें गुलाब के फूल कम खिलते हैं और थोर के कांटे ज्यादा और जल्दी उग आते हैं। यह मानकर चलें कि जीवन में अगर बुराई है, तब भी और अच्छाई है तब भी, दोनों का जनक और प्रबंधक व्यक्ति स्वयं ही है। हम चाहें तो अच्छे फलों को पाने के लिए अच्छे बीजों को बो सकते हैं। हमें सचमुच जीवन और व्यवहार में वह बोना चाहिए कि जिसे काटते और भोगते वक्त हमें घुटन, ग्लानि और प्रायश्चित्त न करना पड़े। हम अगर अपनी ओर से अच्छा बो रहे हैं, इसके बावजूद हमें गलत परिणाम मिल रहा है, तो चिंतित न हों। धीरज रखें, आज जो गलत मिल रहा है, तो वह हमारे किसी कल का परिणाम है। विश्वास रखें, निश्चित रहें; प्रकृति के कायदे-कानून नहीं बदलते। वह हमें उसका अच्छा परिणाम जरूर लौटाएगी, जो हम आज अच्छा कर रहे हैं। हमारा हर कृत्य आने वाले कल की सौगात है। प्रकृति हमें वही सौगात और उपहार लौटाती है, जैसा-जिस भाव से हमने उसे समर्पित किया है। सौहार्द और प्रेम के बदले में आत्मीयता और समर्पण ही लौटकर आते हैं। इसलिए हमारी ओर से किसी पर की जाने वाली दया और करुणा, वास्तव में अपने आप पर की जाने वाली दया और करुणा है। किसी अन्य को हानि या क्षति पहुंचाना, स्वयं के लिए ही आत्मघातक है। जीव-दया आत्मदया है और जीव का वध, आत्मवध। आपने ये दो प्यारी पंक्तियां सुनी होंगी। देते गाली एक हैं, उलटे गाली अनेक। जो तू गाली दे नहीं, तो रहे एक की एक।। बड़ी विचित्र बात है कि गणित में एक और एक दो होते हैं, पर गालियों का गणित-शास्त्र एक और एक को मिलाकर कई गुना कर देता है। गालियों के मामले में जोड़ें कम होती हैं, गुणनफल ही ज्यादा होते हैं। कहीं आप यह प्रयोग करके देख मत लीजिएगा, लेने के देने पड़ जाएंगे। बातें, बातों तक सीमित नहीं रहतीं, वे आगे बढ़ जाती हैं। यह आप भलीभांति जानते हैं कि बातें जब आगे बढ़ती हैं, तो वे बातों तक ही सीमित रहती हैं या लातों तक; इसका कोई तय हिसाब नहीं है। 26 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003877
Book TitleJiye to Aise Jiye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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