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हमने जन्म भी देखा है, जवानी भी देख रहे हैं, रोग-बुढ़ापा और मृत्यु को अपने पर और औरों पर घटित हुआ जान रहे हैं। रोडपति, करोड़पति हो जाया करते हैं और करोड़पति, रोडपति। इस सुंदर सृष्टि पर किसका कौन-सा अगला चरण होगा, कहा नहीं जा सकता। पलक झपकते किसी की लुटिया डूब जाती है और देखते-ही-देखते किसी के नाम लॉटरी खुल जाती है। किसी के नाम मकान हो जाता है, तो किसी की कब्र खुद जाती है। यह काया कि जिस पर आदमी को इतना नाज़ है, जिसे बचाने और साधने के इतने सारे इंतजाम हैं, लेकिन इसके बावजूद किसकी काया कब श्मशान
और कब्रिस्तान में पहुंच जाए, कोई खबर थोड़े ही है। कब किसकी राख नए जीवन की सूत्रधार बन जाया करती है और कब किसका जीवन दो मुट्ठी राख की पोटली, कहा नहीं जा सकता।
मैं अध्येता जीवन-जगत् का
बड़ी विचित्रताओं से भरा है यह जगत् । हमने अब तक केवल रामायण ही पढ़ी है, इस विराट जगत् को नहीं; हमने केवल गीता और महाभारत को पढ़ा है, जीवन को नहीं; हमने केवल राम-कृष्ण-महावीर-बुद्ध से प्रेम किया है, अपने आप से नहीं। कितने ताज्जुब की बात है कि रामायण को सौ दफा पढ़ने के बावजूद हम राम न हो पाए और गीता का नियमित पाठ करने के बावजूद हमारे जीवन से उसके माधुर्य का, उसके सत्य और योग का गीत न फूट गया। केवल महाभारत को पढ़ लेने भर से क्या होगा, जब तक हमारी नपुंसक बन चुकी चेतना में 'भारत' का भाव न जगे, आत्म-विश्वास का सिंहत्व न भर उठे, जीवन-जगत् का बोध न हो जाए। हम पढ़ें इस जगत् को, जगत् में हो रहे परिवर्तनों को देखें। आप पाएंगे रामायण अतीत की कृति नहीं, वरन यह जगत् हर पल, हर क्षण रामायण और महाभारत की ही आवृत्ति है। कोई अगर मुझसे पूछे कि आपका धर्म कौन-सा है और शास्त्र कौन-सा, तो मेरा सीधा-सा जवाब होगा-जो धर्म मनुष्य का होता है, वही मेरा धर्म है और जिस प्रकृति ने इतने विचित्र और
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