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________________ बादल, चहचहाहट करती चिड़ियाएं, हवा के झोंकों से झूलती हरे-भरे वृक्षों की डालियां, समुद्र में उठती लहरें और मिट्टी की तहों में छिपा कुओं का मीठा पानी। कितना सुरम्य स्वरूप है यह सब! सचमुच, हंसते-खिलते चांद-सितारों को देखकर अंतरात्मा के गीत फूट पड़ते हैं और जब-तब निरभ्र आकाश को देखकर अंतस् का आकाश रू-ब-रू हो जाता है। मैंने जगत् के सौंदर्य को देखा है, किंतु इतना कहना सत्य का एक पहलू है, मानव-मानव में फैली स्वार्थ-चेतना, अंधविश्वास की वृत्तियां और नासमझ कट्टरताओं और दुराग्रहों को देखकर मानवता का विकृत स्वरूप भी प्रतिबिंबित हो जाता है। अपनी मुक्ति का रसास्वादन करने के लिए धर्म के द्वार पर दस्तक देने वाला इंसान निहित स्वार्थों के चलते पंथों और दुराग्रहों में बांट दिया जाता है। लोग स्वांग को साधुत्व और अर्थहीन क्रियाओं को धर्म का पर्याय मान बैठते हैं और इस तरह विशाल बुद्धि का स्वामी इंसान, किसी संकीर्ण दृष्टि के चंगुल में फंस जाता है। परिवारों पर जब नज़र डालते हैं, तो उनके अहं और उनकी घरेलू अव्यवस्थाएं उनके खून को आपस में बांट देती हैं। भाई को भाई से प्यार करता देख भला किसे खुशी न होगी, लेकिन भाई जब भाई के ही खून का प्यासा बन जाए, भाई-भाई के बीच ऐसी दरारें पड़ जाएं कि एक-दूसरे का नाम लेना भी पसंद न करे, तो ऐसी स्थिति में संसार की स्वार्थ-चेतना हमें जगत् की निःसारता को समझने के लिए प्रेरित करती है। समाज में अलग-अलग कौम के लोग रहें, तो यह तो समाज की खूबी है कि एक उपवन में कई तरह के रंग-बिरंगे फूल खिले हैं, पर हम जरा समाज की विकृत स्थिति पर ध्यान दें, तो चौंक उठेंगे कि कोई भी कौम दूसरी किसी कौम के कल्याण के लिए प्रयत्न करती हुई नहीं मिलेगी। ओह! इतने बड़े संसार को लोगों ने कितना छोटा बना लिया है। सागर की विशालता ठंडी पड़ चुकी है और लोग अपनी-अपनी तलैयों को ही सागर मान बैठे हैं। लोग अपनी ही तलैया को सागर बनाने के लिए उसके किनारों और पनघटों को खींच-खींचकर उसे संसार का सागर बनाना चाहते हैं। 10 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003877
Book TitleJiye to Aise Jiye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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