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अद्भुत जगत की रचना की है, यह जगत और जगत पर पल्लवित होने वाला जीवन ही मेरा शास्त्र है। किताबों के नाम पर मैंने ढेरों किताबें पढ़ी हैं, न केवल पढ़ी हैं, वरन ढेरों ही मैंने कही और लिखी हैं, पर कोई अगर कहे कि मुझे सबसे सुंदर किताब कौन-सी लगी है, तो मैं कहूंगा कि इस जगत् से बढ़कर कोई श्रेष्ठ किताब नहीं है और जीवन से बढ़कर कोई शास्त्र नहीं है। मैं पाठक हूं, अध्येता हूं जीवन का, जगत् का; मैं द्रष्टा हूं जीवनजगत् की अपने सामने होने वाली हर इहलीला का।
बुद्धि की खाद भर हैं किताबें
मात्र किताबों को पढ़ने का काम उनका है, जो बुद्धिमान हैं। किताबें बुद्धि की खाद हैं, किताबों के द्वारा बुद्धि का सिंचन होता है; किताबें तो बुद्धि की सहेली हैं, पर बुद्धि जीवन का अंतिम चरण नहीं, जीवन की समझ पाने का पहला आयाम है। बुद्धि से शुरुआत होती है, पर बुद्धि पर पूर्णाहुति नहीं। बुद्धि के आगे घाट और भी हैं। जीवन-जगत् को वह व्यक्ति पढ़ना चाहेगा, जो किताबों के भी पार जाना चाहता है, वास्तविक सत्य और रहस्य को जीना और जानना चाहता है। ऐसे व्यक्ति से ही अध्यात्म का जन्म होता है, उसमें ही अध्यात्म का अभ्युदय होता है। अध्यात्म कोई शास्त्र या वाद नहीं है कि जिसे पढ़ा जाए, कि जिसका पंडित हुआ जाए, कि जिस पर तर्क-वितर्क किया जाए, कि जिसे सिद्ध और साबित किया जाए। अध्यात्म तो एक दृष्टि है, एक ऐसी दृष्टि, जिसे हम अंतर्दृष्टि कहेंगे। जिसकी अंतर्दृष्टि खुल गई, बुद्धि तो उसकी चेरी बन जाती है। वह बुद्धि के आगे के द्वारों को खुला हुआ पाता है। आगे जो स्थिति होती है, वह बुद्धि की नहीं, बोध और प्रज्ञा की होती है। उसकी स्थिति स्थितप्रज्ञ की, ऋजुप्राज्ञ की होती है। धर्म का जन्म जीवन और जगत् के सार और असार-दोनों पहलुओं के समझने-बूझने से होता है। शास्त्रों और किताबों के आधार पर धर्म का आचरण ज़रूर चलता रहता है, पर जीवन में धर्म का जन्म नहीं होता। मैंने
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