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चाहिए ।
■ सत्य में व्रत, तप, संयम और समस्त गुणों का निवास है। हम सत्य-धर्म का आचरण करें । सत्यवादी व्यक्ति माँ की तरह विश्वसनीय, गुरु की तरह पूज्य और स्वजन की भाँति सबको प्रिय होता है ।
चोरी, रिश्वत या मिलावट करके कमाया गया धन विनाश के रास्ते खोलता है। पराये धन पर ग़लत नज़र डालने की बज़ाय माँगकर खाना कहीं ज़्यादा अच्छा है ।
■ प्राणी अकेला आता है, अकेला जाता है, जब यही सच है तब फिर संचित धन, वस्तु और ज़मीन पर आसक्ति की जंज़ीर क्यों डाली जाए ।
शील का पालन श्रेष्ठ व्रत और तप है । पर स्त्री और पर-पुरुष की तो कल्पना करना भी पाप है, हमें स्वयं की पत्नी अथवा पति के साथ भी संयम से जीना चाहिए ।
हुए
हे जीव ! अब तो शांत रह । कब तक यों ही क्रोध करते अपनी आत्मा को गिराता रहेगा और दूसरों के दिलों को जलाता रहेगा ?
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