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________________ चाहिए । ■ सत्य में व्रत, तप, संयम और समस्त गुणों का निवास है। हम सत्य-धर्म का आचरण करें । सत्यवादी व्यक्ति माँ की तरह विश्वसनीय, गुरु की तरह पूज्य और स्वजन की भाँति सबको प्रिय होता है । चोरी, रिश्वत या मिलावट करके कमाया गया धन विनाश के रास्ते खोलता है। पराये धन पर ग़लत नज़र डालने की बज़ाय माँगकर खाना कहीं ज़्यादा अच्छा है । ■ प्राणी अकेला आता है, अकेला जाता है, जब यही सच है तब फिर संचित धन, वस्तु और ज़मीन पर आसक्ति की जंज़ीर क्यों डाली जाए । शील का पालन श्रेष्ठ व्रत और तप है । पर स्त्री और पर-पुरुष की तो कल्पना करना भी पाप है, हमें स्वयं की पत्नी अथवा पति के साथ भी संयम से जीना चाहिए । हुए हे जीव ! अब तो शांत रह । कब तक यों ही क्रोध करते अपनी आत्मा को गिराता रहेगा और दूसरों के दिलों को जलाता रहेगा ? 85 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003876
Book TitleCharge kare Zindage
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2011
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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