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क्यों जिएँ धर्म के उसूल
इस संसार - सागर में धर्म ही शरण है, गति है, प्रतिष्ठा है। अहिंसा, सत्य, अचौर्य, अपरिग्रह और शील का पालन धर्म के पाँच चरण हैं । धर्म करने वालों की तो रात्रियाँ भी सफल होती हैं जबकि अधर्म करने वालों के तो दिन भी निष्फल चले जाया करते हैं ।
■ अहिंसा सारे संसार की सुरक्षा का आधार है । जैसे दुःख हमें प्रिय नहीं है वैसे ही किसी भी जीव को दुःख प्रिय नहीं है। यह जानकर हमें सबके प्रति प्रेम और मित्रता का हाथ बढ़ाना
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