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का स्तर क्या है, इसका हमारे जीवन पर बहुत बड़ा असर पड़ता है। अगर शिक्षा का स्तर निम्न है, तो सोच का स्तर भी निम्न होगा
और यदि शिक्षा का स्तर उच्च है, तो सोच का स्तर भी उच्च होगा। वही शिक्षा शिक्षा है, जो जीने की कला सिखाए, जीने की अंतर्दृष्टि प्रदान करे। अगर आप हिटलर, चंगेज खां, तैमूर लंग का जीवन-चरित्र पढ़ते हैं, तो मैं नहीं जानता कि ऐसे दुःस्वप्नों को पढ़कर आप अपने जीवन में कौन-सी प्रेरणा ग्रहण करेंगे। पढ़ना है, तो सम्राट अशोक का जीवन-चरित्र पढ़ें, मैक्समूलर, शेक्सपीयर, रवीन्द्रनाथ टैगोर, गांधी की रचनाओं को पढ़ें। ऐसे रचनात्मक लोगों के सकारात्मक संदर्भो को पढ़ें, तो हमारी सोच और शिक्षा का स्तर सुधरेगा। अगर अश्लील साहित्य को पढ़ोगे, तो आपके जीवन में अश्लीलता आएगी और सौम्य-भद्र साहित्य पढ़ोगे, तो आपके जीवन में वैसी ही सौम्यता और शालीनता आएगी।
अगर आप अपने घर में एक ऐसी पत्रिका ला रहे हैं, जिसका मुखपृष्ठ ही भद्दा-बेहूदा है, तो ध्यान रखें, उस मुखपृष्ठ को देखकर आपके छोटे बेटे के मन में भी मां-बहन के प्रति विकृत भाव ही जगेंगे। टी.वी. देखें, तो इस बात का पूरा विवेक रखा जाना चाहिए कि कौन-सा कार्यक्रम सब लोगों के बीच बैठकर देखने लायक है। ऐसा न हो कि टी.वी. में बलात्कार का दृश्य चल रहा है और देवर-भाभी सभी एक साथ बैठे उसे देख रहे हैं। टी.वी. की अच्छी शिक्षाओं को ग्रहण करें, अच्छे कार्यक्रम, अच्छे धारावाहिक देखें।
आप सोचें कि आप अपने घर में कैसा वातावरण बनाना चाहते हैं, कैसी शिक्षाएं देना चाहते हैं। मुझे याद है, एक महानुभाव हमारे पास पहुंचे। वे हमारे पास बैठे कुछ चर्चा कर रहे थे कि बाहर से उनकी कार के टेप रिकॉर्डर से आवाज़ आई। एक बेहूदा गाना चल रहा था। महानुभाव ने कहा कि बच्चों ने चालू कर दिया होगा। मैंने कहा, 'क्या आप ऐसी कैसेट चलाते हैं? संगीत सुनना गलत नहीं है, मगर वह संगीत सुना जाए, जो जीवन को सुख-सुकून दे। यह संगीत आपके बच्चों को कौन-से संस्कार दे रहा है? ऐसा संगीत दूषित और प्रदूषित सोच देने के अलावा और कुछ नहीं कर सकता, फिर चाहे आप
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