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संगति का असर सोच पर मनुष्य के मस्तिष्क को प्रभावित करने वाला दूसरा तत्त्व है, संगति, सोहबत । इससे बहुत फ़र्क पड़ता है कि व्यक्ति किन लोगों के साथ जीता है, उठता-बैठता है। कौन व्यक्ति कैसा है, अगर यह पहचानना हो, तो उसके दोस्तों की जांच-पड़ताल करो। जैसे दोस्त होंगे, वैसा ही व्यक्ति का व्यक्तित्व बनता चला जाएगा। अच्छे लोगों के बीच अगर बुरा आदमी भी बैठेगा, तो वह भी ज़रूर अच्छा बन जाएगा और बुरे लोगों के बीच अगर अच्छा आदमी भी बैठ गया, तो उसे बुरा होने से कोई रोक नहीं सकता।काला और गोरा आदमी पास-पास बैठेंगे, तो रंग भले ही न बदले, लेकिन एक-दूसरे के गुण-अवगुण जरूर प्रभावित होंगे। ___ अगर गंगा का पानी नाली में बहा दें, तो गंगा का पानी भी गंदा हो जाता है और नाली का पानी ले जाकर गंगा में मिला दें, तो नाली का पानी भी गंगोदक बन जाएगा। अगर शराब की दुकान पर खड़े होकर दूध भी पीओगे तो लोग आपको शराबी ही समझेंगे। जैसी संगति और सोहबत मिलती है, आदमी का जीवन वैसा ही बनता चला जाता है। अगर बादल से पानी की बूंद टपकती है, तो जमीन पर गिरते ही वह मिट्टी में मिल जाती है, अपना अस्तित्व खो देती है। पानी की वही बूंद अगर केले के पेड़ के गर्भ में जाकर गिर जाए, तो कपूर का रूप धारण कर लेती है। वही बूंद गर्म तवे पर जा गिरे, तो भस्म हो जाती है। वही बूंद अगर सर्प के मुंह में जा गिरे, तो ज़हर बन जाती है। वही बंद सीप में गिर जाए, तो मोती बन जाती है। यही संगति का असर है। इसलिए ज़िंदगी में अकेले रहना कोई पाप नहीं है, मगर पलत आदतों से जुड़े व्यक्ति से मैत्री करना पाप का निमित्त ज़रूर बन सकती है। मित्र बनाएं, तो कृष्ण जैसे व्यक्ति को बनाएं कि सुदामा निहाल हो जाए। अगर शकुनि जैसे लोगों को मित्र बनाओगे, तो अपना भी तहस-नहस और अन्य लोगों का भी बुरा करोगे। शिक्षा : विचारधारा की आधारशिला हमारी सोच और विचारधारा को जो तीसरा तत्त्व प्रभावित करता है, वह है हमारी शिक्षा। हम कैसी शिक्षा ग्रहण करते हैं, हमारी शिक्षा
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